राजेन्द्र मनचंदा बानी की टॉप 20 शायरी
वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
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दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
मैं कि अक्स-ए-मुंतशिर एक एक मंज़र में अकेला
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कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी
सितारे छत पे रक्खे थे शिकन बिस्तर पे रक्खी थी
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वही इक मौसम-ए-सफ़्फ़ाक था अंदर भी बाहर भी
अजब साज़िश लहू की थी अजब फ़ित्ना हवा का था
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