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Ahmad Mushtaq's Photo'

पाकिस्तान के सबसे विख्यात और प्रतिष्ठित आधुनिक शायरों में से एक, अपनी नव-क्लासिकी लय के लिए प्रसिद्ध।

पाकिस्तान के सबसे विख्यात और प्रतिष्ठित आधुनिक शायरों में से एक, अपनी नव-क्लासिकी लय के लिए प्रसिद्ध।

अहमद मुश्ताक़ के शेर

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यार सब जम्अ हुए रात की ख़ामोशी में

कोई रो कर तो कोई बाल बना कर आया

किसी जानिब नहीं खुलते दरीचे

कहीं जाता नहीं रस्ता हमारा

उम्र भर दुख सहते सहते आख़िर इतना तो हुआ

अपनी चुप को देख लेता हूँ सदा बनते हुए

बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा

आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा

इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे

और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है

मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है

वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है

छत से कुछ क़हक़हे अभी तक

जालों की तरह लटक रहे हैं

मिलने की ये कौन घड़ी थी

बाहर हिज्र की रात खड़ी थी

कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती

धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते

ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है

इसे देखें कि इस में डूब जाएँ

जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को

टपकती हैं अभी तक रस्सियाँ आहिस्ता आहिस्ता

फ़ज़ा-ए-दिल पे कहीं छा जाए यास का रंग

कहाँ हो तुम कि बदलने लगा है घास का रंग

तिरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को

चमकती धूप में साए इकट्ठे कर रहा हूँ मैं

होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए

ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है

तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ

तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ

वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखो

कोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में

दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया

अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम

मुझे मालूम है अहल-ए-वफ़ा पर क्या गुज़रती है

समझ कर सोच कर तुझ से मोहब्बत कर रहा हूँ मैं

गुज़रे हज़ार बादल पलकों के साए साए

उतरे हज़ार सूरज इक शह-नशीन-ए-दिल पर

झिलमिलाते रहे वो ख़्वाब जो पूरे हुए

दर्द बेदार टपकता रहा आँसू आँसू

दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर

जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं

वहाँ सलाम को आती है नंगे पाँव बहार

खिले थे फूल जहाँ तेरे मुस्कुराने से

अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील

वो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की

इश्क़ में कौन बता सकता है

किस ने किस से सच बोला है

वो जो रात मुझ को बड़े अदब से सलाम कर के चला गया

उसे क्या ख़बर मिरे दिल में भी कभी आरज़ू-ए-गुनाह थी

तू ने ही तो चाहा था कि मिलता रहूँ तुझ से

तेरी यही मर्ज़ी है तो अच्छा नहीं मिलता

धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है

हरे जंगल बदलते जा रहे हैं कार-ख़ानों में

एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना

और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में

जो मुक़द्दर था उसे तो रोकना बस में था

उन का क्या करते जो बातें ना-गहानी हो गईं

हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़'

हमारे साथ है साया हमारा

ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ

उसे ढूँडें कि उस को भूल जाएँ

हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए

वो अपने ध्यान में बैठे हुए अच्छे लगे हम को

भूल गई वो शक्ल भी आख़िर

कब तक याद कोई रहता है

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है

चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले

मुझ से अच्छे तो शब-ए-ग़म के मुक़द्दर निकले

रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई

क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा

नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ

शामिल जो एक ख़्वाब मिरे रत-जगे में था

बला की चमक उस के चेहरे पे थी

मुझे क्या ख़बर थी कि मर जाएगा

जैसे पौ फट रही हो जंगल में

यूँ कोई मुस्कुराए जाता है

हमारा क्या है जो होता है जी उदास बहुत

तो गुल तराशते हैं तितलियाँ बनाते हैं

चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और

दिन कहीं और गुज़रते थे तो रातें कहीं और

वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी

फिरती हैं वो शक्लें जिन्हें देखा नहीं होता

तू अगर पास नहीं है कहीं मौजूद तो है

तेरे होने से बड़े काम हमारे निकले

रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए

इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है

बहुत उदास हो तुम और मैं भी बैठा हूँ

गए दिनों की कमर से कमर लगाए हुए

अब शुग़्ल है यही दिल-ए-ईज़ा-पसंद का

जो ज़ख़्म भर गया है निशाँ उस का देखना

जहान-ए-इश्क़ से हम सरसरी नहीं गुज़रे

ये वो जहाँ है जहाँ सरसरी नहीं कोई शय

तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से

लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता

मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी

ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो

खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में

हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम

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