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नअत1
मसनवी1
अल्ताफ़ हुसैन हाली के शेर
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत
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फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
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हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और
आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ
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सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती
चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की
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होती नहीं क़ुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क़ की
दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ
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टैग : दुआ
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जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में
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बहुत जी ख़ुश हुआ 'हाली' से मिल कर
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में
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है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ
अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ
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फ़राग़त से दुनिया में हर दम न बैठो
अगर चाहते हो फ़राग़त ज़ियादा
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इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद
ख़ुद-बख़ुद दिल में है इक शख़्स समाया जाता
हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक
हम से पूछे कोई होती है मोहब्बत कैसी
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यही है इबादत यही दीन ओ ईमाँ
कि काम आए दुनिया में इंसाँ के इंसाँ
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टैग : एकता
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एक रौशन दिमाग़ था न रहा
शहर में इक चराग़ था न रहा
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वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया
दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
सीने में दाग़ है कि मिटाया न जाएगा
तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त
उल्फ़त वो राज़ है कि छुपाया न जाएगा
राज़ी हैं हम कि दोस्त से हो दुश्मनी मगर
दुश्मन को हम से दोस्त बनाया न जाएगा
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शहद-ओ-शकर से शीरीं उर्दू ज़बाँ हमारी
होती है जिस के बोले मीठी ज़बाँ हमारी
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टैग : उर्दू
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आ रही है चाह-ए-यूसुफ़ से सदा
दोस्त याँ थोड़े हैं और भाई बहुत
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'हाली' सुख़न में 'शेफ़्ता' से मुस्तफ़ीद है
'ग़ालिब' का मो'तक़िद है मुक़ल्लिद है 'मीर' का
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कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी
सब वाइज़ों की बाक़ी रंगीं-बयानियाँ हैं
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चोर है दिल में कुछ न कुछ यारो
नींद फिर रात भर न आई आज
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टैग : नींद
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दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
कश्ती किसी की पार हो या दरमियाँ रहे
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टैग : दरिया
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क्यूँ बढ़ाते हो इख़्तिलात बहुत
हम को ताक़त नहीं जुदाई की
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टैग : जुदाई
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तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़
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टैग : दिल्ली
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उस के जाते ही ये क्या हो गई घर की सूरत
न वो दीवार की सूरत है न दर की सूरत
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टैग : जुदाई
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उस ने अच्छा ही किया हाल न पूछा दिल का
भड़क उठता तो ये शो'ला न दबाया जाता
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मुँह कहाँ तक छुपाओगे हम से
तुम में आदत है ख़ुद-नुमाई की
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राह के तालिब हैं पर बे-राह पड़ते हैं क़दम
देखिए क्या ढूँढते हैं और क्या पाते हैं हम
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क़ैस हो कोहकन हो या 'हाली'
आशिक़ी कुछ किसी की ज़ात नहीं
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हम ने हर अदना को आ'ला कर दिया
ख़ाकसारी अपनी काम आई बहुत
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हम रोज़-ए-विदाअ' उन से हँस हँस के हुए रुख़्सत
रोना था बहुत हम को रोते भी तो क्या होता
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नज़र आती नहीं अब दिल में तमन्ना कोई
बाद मुद्दत के तमन्ना मिरी बर आई है
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इक दर्द हो बस आठ पहर दिल में कि जिस को
तख़फ़ीफ़ दवा से हो न तस्कीन दुआ से
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टैग : दर्द
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बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिज्राँ में नहीं
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टैग : बेक़रारी
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आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम
सब कुछ कहा मगर न खुले राज़-दाँ से हम
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मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत
कोई वादा पूरा हुआ चाहता है
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टैग : वादा
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दिखाना पड़ेगा मुझे ज़ख़्म-ए-दिल
अगर तीर उस का ख़ता हो गया
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क़लक़ और दिल में सिवा हो गया
दिलासा तुम्हारा बला हो गया
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धूम थी अपनी पारसाई की
की भी और किस से आश्नाई की
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यारान-ए-तेज़-गाम ने महमिल को जा लिया
हम महव-ए-नाला-ए-जरस-ए-कारवां रहे
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सख़्त मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हम भी आख़िर को जी चुराने लगे
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रोना है ये कि आप भी हँसते थे वर्ना याँ
तअ'न-ए-रक़ीब दिल पे कुछ ऐसा गिराँ न था
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ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है बे-सर्फ़ा मोहतसिब
बढ़ता है और ज़ौक़-ए-गुनह याँ सज़ा के ब'अद
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टैग : गुनाह
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गुल-ओ-गुलचीं का गिला बुलबुल-ए-ख़ुश-लहजा न कर
तू गिरफ़्तार हुई अपनी सदा के बाइ'स
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हर सम्त गर्द-ए-नाक़ा-ए-लैला बुलंद है
पहुँचे जो हौसला हो किसी शहसवार का
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कुछ हँसी खेल सँभलना ग़म-ए-हिज्राँ में नहीं
चाक-ए-दिल में है मिरे जो कि गरेबाँ में नहीं
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यारान-ए-तेज़-गाम ने मंज़िल को जा लिया
हम महव-नाला-ए-जरस-ए-कारवाँ रहे
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