शिक्षक दिवस पर शेर
किसी भी विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है. जहां माता-पिता बच्चों की शारीरिक नशो नुमा में हिस्सा लेते हैं वहीं शिक्षक बौद्धिक विकास में. आज का दिन शिक्षकों के इन्हीं योगदानों के लिए ख़िराज-ए-तहसीन पेश करने का है. इस शिक्षक दिवस पर हमने आपके लिए कुछ अच्छे शेरों का एक चयन किया है. इन्हें पढ़ीए और अपने शिक्षकों के साथ साझा कीजीए.
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत
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शागिर्द हैं हम 'मीर' से उस्ताद के 'रासिख़'
उस्तादों का उस्ताद है उस्ताद हमारा
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अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
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वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ 'जौहर'
जो अपने जान-ओ-दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
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अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'
मानते हैं सब मिरे उस्ताद को
उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज
की अहल-ए-सुख़न ने तिरी तारीफ़ बड़ी बात
वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ का
कि किताब अक़्ल की ताक़ पर जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही
मदरसा मेरा मेरी ज़ात में है
ख़ुद मोअल्लिम हूँ ख़ुद किताब हूँ मैं
महरूम हूँ मैं ख़िदमत-ए-उस्ताद से 'मुनीर'
कलकत्ता मुझ को गोर से भी तंग हो गया
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फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए
दर्स-गाहों में निसाबों की थकन बाक़ी रही
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मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे
मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं
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सच ये है हम ही मोहब्बत का सबक़ पढ़ न सके
वर्ना अन-पढ़ तो न थे हम को पढ़ाने वाले
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मु-ए-जुज़ 'मीर' जो थे फ़न के उस्ताद
यही इक रेख़्ता-गो अब रहा है
है और इल्म ओ अदब मकतब-ए-मोहब्बत में
कि है वहाँ का मोअल्लिम जुदा अदीब जुदा
शागिर्द तर्ज़-ए-ख़ंदा-ज़नी में है गुल तिरा
उस्ताद-ए-अंदलीब हैं सोज़-ओ-फ़ुग़ाँ में हम
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