आबरू शाह मुबारक के शेर
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
नज़र कर आप पर मत कर नज़र अफ़आल पर मेरे
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टैग : दुआ
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मैं निबल तन्हा न इस दुनिया की सोहबत सीं हुआ
रुस्तमों कूँ कर दिया है ना-तवाँ इंज़ाल नीं
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तिरे रुख़सारा-ए-सीमीं पे मारा ज़ुल्फ़ ने कुंडल
लिया है अज़दहा नीं छीन यारो माल आशिक़ का
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डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
सुब्ह कूँ खोला न कर इस ज़ुल्फ़-ए-ख़ून-आशाम कूँ
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टैग : ज़ुल्फ़
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रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
सैल सीं अनझुवाँ के सारा शहर वीराँ हो गया
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बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
तेरा दहन मज़े सीं पुर है पे है कटोरा
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टैग : किस
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ख़ुद अपनी आदमी को बड़ी क़ैद-ए-सख़्त है
फोड़ आईना व तोड़ सिकंदर की सद के तईं
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मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया
जो कि होना था सो कुछ अँखियों में बाहम हो गया
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तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन
ख़ुर्शीद गुल-ए-दोपहरिया है
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तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
वज़ू दरकार नईं कुछ इस इबादत में तयम्मुम कर
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कम मत गिनो ये बख़्त-सियाहों का रंग-ए-ज़र्द
सोना वही जो होवे कसौटी कसा हुआ
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ब्यारे तिरे नयन कूँ आहू कहे जो कोई
वो आदमी नहीं है हैवान है बेचारा
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बुलबुल हुआ है देख सदा रंग की बहार
इस साल 'आबरू' कूँ बन आई बसंत रुत
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टैग : बसंत
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आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
मारुँगा इस रक़ीब कूँ छड़ियों से गोद गोद
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टैग : रक़ीब
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हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
न होवें 'आबरू' के क्यूँ हरे बख़्त
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दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ
नहीं ताक़त अँखियों के खोलने की अब तलक हम कूँ
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टैग : ख़्वाब
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तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
जब तुम्हें हम सलाम करते हैं
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टैग : तग़ाफ़ुल
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सर कूँ अपने क़दम बना कर के
इज्ज़ की राह मैं निबहता हूँ
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ग़ुंचे नीं इस बहार में कडवाया अपना दिल
बुलबुल चमन में फूल के गाई बसंत रुत
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टैग : बसंत
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तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम
कि यूँ फेंका जुदा मुझ से फड़कती मछली को जल सीं
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टैग : तग़ाफ़ुल
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उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया
बोसा लेते लिया तो सही लेक मर गया
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टैग : किस
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तुम यूँ सियाह-चश्म ऐ सजन मुखड़े के झुमकों से हुए
ख़ुर्शीद नीं गर्मी गिरी तब तो हिरन काला हुआ
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यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
ऐसी तरह करो कि उसे मेहरबाँ करो
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क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली
हो कर के बे-क़रार देखो आज फिर गया
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टैग : बेक़रारी
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बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया
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टैग : किस
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अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
उलट जावे कलेजा नागनी का
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टैग : ज़ुल्फ़
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यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
जब रू-ब-रू हो तेरे गुफ़्तार भूल जावे
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दिल कब आवारगी को भूला है
ख़ाक अगर हो गया बगूला है
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अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
आता तो था पे देख के हम कूँ पलट गया
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फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
दम-ब-दम ज़ीस्त नें मेरी मुझे ज़ुन्नार दिया
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जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
नर्मी सूँ दिल हुआ है तब सूँ रुई का गाला
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जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
तो ज़रर नईं गो कि होवे बिस मिला
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ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
दोस्ती का निहाल डाल काट
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टैग : ग़म
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मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं
आसमाँ चर्ख़ी के जूँ फिरता है लेकिन माल नईं
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टैग : मुफ़्लिसी
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इश्क़ का तीर दिल में लागा है
दर्द जो होवता था भागा है
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क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
लग चुका अब छूटना मुश्किल है उस का दिल है ये
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क्यूँ न आ कर उस के सुनने को करें सब यार भीड़
'आबरू' ये रेख़्ता तू नीं कहा है धूम का
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टैग : रेख़्ता
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नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
बोसा है तुझ लबाँ का मज़े-दार चटपटा
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टैग : किस
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ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
ख़ुर्शीद थरथराया और माह देख हाला
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तिरा हर उज़्व प्यारे ख़ुश-नुमा है उज़्व-ए-दीगर सीं
मिज़ा सीं ख़ूब-तर अबरू ओ अबरू सीं भली अँखियाँ
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इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
राज़ी हो गर कहो तो ख़ल्वत में आ के कर जाँ
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ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है
हज़रत-ए-रमज़ां गए तशरीफ़ ले अब ईद है
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जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
नित गुनहगार क्यूँ न हो आदम
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कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं
ये ना-शाएर तिरी ज़ुल्फ़ाँ कूँ क्या क्या नाम धरते हैं
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क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
क्या तू नें समझा है आशिक़ इस क़दर है मोम का
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टैग : गर्मी
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अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
आफ़ाक़ तमाम दहरिया है
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कहाँ मिलता है जाँ अन्क़ा है ऐसा बे-नियाज़ आशिक़
कि ख़्वाँ और माँ दिया है सब उड़ा और फिर नहीं पर्वा
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मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
क्यूँ कर कहें न उन कूँ अब ज़ीनतुल-मसाजिद
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तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
गया है भूल हैरत सीं पिया पानी के तईं बहना
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दिलदार की गली में मुकर्रर गए हैं हम
हो आए हैं अभी तो फिर आ कर गए हैं हम
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