अख़्तर अंसारी के शेर
याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब
छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
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हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
उस से पूछे कोई चाहत के मज़े
जिस ने चाहा और जो चाहा गया
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रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
क्या चीज़ उफ़ ये कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब है
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टैग : बेचैनी
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जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
बे-पिए आठों पहर मदहोश रहना आ गया
वो माज़ी जो है इक मजमुआ अश्कों और आहों का
न जाने मुझ को इस माज़ी से क्यूँ इतनी मोहब्बत है
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं
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टैग : जवानी
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इस में कोई मिरा शरीक नहीं
मेरा दुख आह सिर्फ़ मेरा है
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टैग : दर्द
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शबाब नाम है उस जाँ-नवाज़ लम्हे का
जब आदमी को ये महसूस हो जवाँ हूँ मैं
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मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
अब सुख़न की आड़ में क्या कुछ न कहना आ गया
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समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
तड़पता हूँ मगर औरों को तड़पाना नहीं आता
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ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है
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आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
सहते सहते हम को आख़िर रंज सहना आ गया
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रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़
शबाब कहते हैं जिस चीज़ को क़यामत है
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टैग : जवानी
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कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मैं ख़्वाब देख रहा हूँ मुझे जगाओ नहीं
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टैग : ख़्वाब
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कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
अब 'अख़्तर' चाहे तुम कुछ भी कहो ये मेरी फ़ितरत है
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सुनने वाले फ़साना तेरा है
सिर्फ़ तर्ज़-ए-बयाँ ही मेरा है
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दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
मुब्तला-ए-ग़म है दुनिया और मैं ग़म-ख़्वार हूँ
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शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही
पियूँ शराब यहाँ तक कि शाम हो जाए
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टैग : शराब
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मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है
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यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
अब वो चकनाचूर पड़ा है जिस शीशे में बाल न था
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रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
हाए क्या शय थी बहार-ए-आरज़ू
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टैग : आरज़ू
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इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
अगर वो जी नहीं सकता तो मर तो सकता है
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मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
कोई शराब बनाओ बहार के दिन हैं
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दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
वो आग बुझ गई लेकिन गुदाज़ बाक़ी है
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मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है
बयाँ तो हो नहीं सकती जो अपनी हालत है
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दिल-ए-पुर-शौक़ की क़िस्मत में लिखी है नाकामी
ये इक नाज़ुक सी शय क्यों इस तरह ठुकराई जाती है
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