अमीर मीनाई की टॉप 20 शायरी
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आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है
व्याख्या
इस शे’र में ग़ज़ब का चोंचाल है। यही चोंचाल उर्दू ग़ज़ल की परम्परा की विशेषता है। आँखें दिखाना द्विअर्थी है। एक मायनी तो ये है कि केवल आँखें दिखाते हो अर्थात मात्र आँखों का नज़ारा कराते हो। दूसरा अर्थ यह है कि केवल ग़ुस्सा करते हो क्योंकि आँखें दिखाना मुहावरा है और इसके कई मायनी हैं जैसे घूर कर देखना, क्रोध की दृष्टि से देखना, घुड़की देना, इशारा व संकेत करना, आँखों ही आँखों में बातें करना। मगर शे’र में जो व्यंग्य दिखाई देता है उसके अनुसार आँखें दिखाने को घुड़की देने अर्थात क्रोध से देखना ही समझना चाहिए।
जोबन के कई अर्थ हैं जैसे सुंदरता, चढ़ती जवानी, स्त्री की छाती अर्थात स्तन। जब ये कहा कि वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है तो तात्पर्य स्तन से ही है क्योंकि जब आँख दिखाई तो स्पष्ट है कि चेहरा भी दिखाया और जब आमने सामने खड़े हो गए तो जैसे चढ़ती जवानी का नज़ारा भी हुआ। अगर कोई चीज़ जो शायर की जानकारी के अनुसार अच्छा माल है और जिसे बाँध के रखा गया है तो वह प्रियतम का स्तन ही हो सकता है।
इस तरह शे’र का अर्थ यह होता है कि तुम मुझे केवल ग़ुस्से से आँखें दिखाते हो और जो चीज़ देखने का मैं इच्छुक हूँ उसे अलग से बाँध कर रखा है।
शफ़क़ सुपुरी
व्याख्या
इस शे’र में ग़ज़ब का चोंचाल है। यही चोंचाल उर्दू ग़ज़ल की परम्परा की विशेषता है। आँखें दिखाना द्विअर्थी है। एक मायनी तो ये है कि केवल आँखें दिखाते हो अर्थात मात्र आँखों का नज़ारा कराते हो। दूसरा अर्थ यह है कि केवल ग़ुस्सा करते हो क्योंकि आँखें दिखाना मुहावरा है और इसके कई मायनी हैं जैसे घूर कर देखना, क्रोध की दृष्टि से देखना, घुड़की देना, इशारा व संकेत करना, आँखों ही आँखों में बातें करना। मगर शे’र में जो व्यंग्य दिखाई देता है उसके अनुसार आँखें दिखाने को घुड़की देने अर्थात क्रोध से देखना ही समझना चाहिए।
जोबन के कई अर्थ हैं जैसे सुंदरता, चढ़ती जवानी, स्त्री की छाती अर्थात स्तन। जब ये कहा कि वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है तो तात्पर्य स्तन से ही है क्योंकि जब आँख दिखाई तो स्पष्ट है कि चेहरा भी दिखाया और जब आमने सामने खड़े हो गए तो जैसे चढ़ती जवानी का नज़ारा भी हुआ। अगर कोई चीज़ जो शायर की जानकारी के अनुसार अच्छा माल है और जिसे बाँध के रखा गया है तो वह प्रियतम का स्तन ही हो सकता है।
इस तरह शे’र का अर्थ यह होता है कि तुम मुझे केवल ग़ुस्से से आँखें दिखाते हो और जो चीज़ देखने का मैं इच्छुक हूँ उसे अलग से बाँध कर रखा है।
शफ़क़ सुपुरी
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शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
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शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
कि जोड़ दे कोई टुकड़ा शब-ए-जुदाई का
व्याख्या
शब-ए-विसाल के सम्बंध से शब-ए-जुदाई ने बहुत ही दिलचस्प अंतर्विरोध पैदा किया है और दरअसल इस शे’र का विषय इसी अंतर्विरोध पर आधारित है। मिलन की रात के संक्षिप्त होने का शिकवा उर्दू ग़ज़ल की परम्परा में शामिल है। इसी तरह से शायरों ने जुदाई की रात या शब-ए-फ़िराक़ के दीर्घ होने की शिकायत भी की है। इस शे’र में शब-ए-विसाल यानी मुलाक़ात, शब-ए-फ़िराक़ अर्थात जुदाई के समानुपात में 'बहुत कम', 'जोड़ दे कोई टुकड़ा’ और आसमान के संयोजन ने सुंदरता पैदा की है। आसमान का प्रयोग उर्दू शायरों ने बहुत सी चीज़ों के रूपक या प्रतीक के रूप में किया है। उदाहरण के लिए आसमान को तक़दीर, ख़ुदा(ईश्वर) और समय आदि के रूपकों के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इस शे’र में आसमान वास्तव में समय का एक रूपक है।
शायर संबोधित से कहता है कि महबूब से मुलाक़ात की रात लम्बाई की दृष्टि से बहुत छोटी है। अर्थात जिस रात महबूब से मिलन होता है वो कुछ क्षणों में गुज़र जाती है। इसके मुक़ाबले में महबूब से जुदाई की रात बहुत लम्बी होती है। यानी जब महबूब दूर हो तो रात किसी तरह कटती ही नहीं। इसलिए ऐ संबोधित, तुम समय से कहो कि वो विरह की रात से कोई हिस्सा काट के मिलन की रात में मिला दे ताकि आशिक़ अपने महबूब की निकटता से पूरी तरह आनंदित होसके।
शफ़क़ सुपुरी
व्याख्या
शब-ए-विसाल के सम्बंध से शब-ए-जुदाई ने बहुत ही दिलचस्प अंतर्विरोध पैदा किया है और दरअसल इस शे’र का विषय इसी अंतर्विरोध पर आधारित है। मिलन की रात के संक्षिप्त होने का शिकवा उर्दू ग़ज़ल की परम्परा में शामिल है। इसी तरह से शायरों ने जुदाई की रात या शब-ए-फ़िराक़ के दीर्घ होने की शिकायत भी की है। इस शे’र में शब-ए-विसाल यानी मुलाक़ात, शब-ए-फ़िराक़ अर्थात जुदाई के समानुपात में 'बहुत कम', 'जोड़ दे कोई टुकड़ा’ और आसमान के संयोजन ने सुंदरता पैदा की है। आसमान का प्रयोग उर्दू शायरों ने बहुत सी चीज़ों के रूपक या प्रतीक के रूप में किया है। उदाहरण के लिए आसमान को तक़दीर, ख़ुदा(ईश्वर) और समय आदि के रूपकों के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इस शे’र में आसमान वास्तव में समय का एक रूपक है।
शायर संबोधित से कहता है कि महबूब से मुलाक़ात की रात लम्बाई की दृष्टि से बहुत छोटी है। अर्थात जिस रात महबूब से मिलन होता है वो कुछ क्षणों में गुज़र जाती है। इसके मुक़ाबले में महबूब से जुदाई की रात बहुत लम्बी होती है। यानी जब महबूब दूर हो तो रात किसी तरह कटती ही नहीं। इसलिए ऐ संबोधित, तुम समय से कहो कि वो विरह की रात से कोई हिस्सा काट के मिलन की रात में मिला दे ताकि आशिक़ अपने महबूब की निकटता से पूरी तरह आनंदित होसके।
शफ़क़ सुपुरी
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