मीना कुमारी नाज़ के शेर
न कोई शहर न रस्ता न सफ़र
मुंतशिर ज़ेहन की उलझी घातें
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कहीं कहीं कोई तारा कहीं कहीं जुगनू
जो मेरी रात थी वो आप का सवेरा है
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पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की सदक़े की सहर होती है
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दिल तोड़ दिया उस ने ये कह के निगाहों से
पत्थर से जो टकराए वो जाम नहीं होता
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टैग : दिल
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हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनआ'म नहीं होता
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अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है
मिरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है
आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा
जब चाहा इक़रार किया है जब चाहा इंकार किया
देखो हम ने ख़ुद ही से ये कैसा अनोखा प्यार किया
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अपना ही सौदा कर बैठे
तुम सा जो सबा-फ़रोश आया
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हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह
चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह
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ये न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
शम्अ' हूँ फूल हूँ या रेत पे क़दमों का निशाँ
आप को हक़ है मुझे जो भी जी चाहे कह लें
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अयादत को आए शिफ़ा हो गई
मिरी रूह तन से जुदा हो गई
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आँखों को देखते ही बोले
बिन पिए कोई मदहोश आया
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
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चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवाना-वार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
काँच के टुकड़े चुने मगर
तुझ सा वो बे-कल क्या हो
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तेरे क़दमों की आहट को ये दिल है ढूँडता हर दम
हर इक आवाज़ पर इक थरथराहट होती जाती है
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अब आँख खुली अब होश आया
बहका सा जब गुल-पोश आया
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अन-कही अन-सुनी सी कुछ बातें
सूने दिन और ये सुनसाँ रातें
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