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शायरी के अनुवाद4
मुनीर नियाज़ी के शेर
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
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आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है
जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर'
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं
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ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो
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टैग : ख़्वाब
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मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
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टैग : दिल
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ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे
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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
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मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी
गुज़र जाएँगे जब ये दिन ये उन की याद में होगी
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टैग : व्हाट्सऐप
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आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना
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इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ को
मैं एक दरिया के पार उतरा तो मैं ने देखा
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टैग : ज़र्बुल-मसल
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अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया
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टैग : हुस्न
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ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
शौक़ लेकिन दिल में वापस लौट कर आने का था
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थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ
मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ
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शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
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टैग : औरत
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वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
आज कल होता गया और दिन हवा होते गए
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टैग : वक़्त
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वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन
वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन
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आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही
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टैग : याद
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कोई तो है 'मुनीर' जिसे फ़िक्र है मिरी
ये जान कर अजीब सी हैरत हुई मुझे
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कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गया
मुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था
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पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
हुस्न वालों की सादगी न गई
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मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में
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'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा
किसी के हिज्र में बीमार होना
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कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'
मज़ा तो जब है कि उस शोख़ को पता ही न हो
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कुछ दिन के बा'द उस से जुदा हो गए 'मुनीर'
उस बेवफ़ा से अपनी तबीअत नहीं मिली
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किसी अकेली शाम की चुप में
गीत पुराने गा के देखो
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मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ
तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो
मैं डूब भी जाता तो कहीं और उभरता
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मैं उस को देख के चुप था उसी की शादी में
मज़ा तो सारा इसी रस्म के निबाह में था
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कितने यार हैं फिर भी 'मुनीर' इस आबादी में अकेला है
अपने ही ग़म के नश्शे से अपना जी बहलाता है
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ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
दुनिया से ख़ामुशी से गुज़र जाएँ हम तो क्या
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कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए
तू ने वो वक़्त हम को ज़माने नहीं दिया
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नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
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'मुनीर' इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को
हमेशा एक सा होना नहीं है
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टैग : ज़िंदगी
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जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं
उस ने व'अदा कर लिया मैं ने भी व'अदा कर लिया
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ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ
बारे वो शोख़ पहले से चालाक तो हुआ
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घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
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टैग : बारिश
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लिए फिरा जो मुझे दर-ब-दर ज़माने में
ख़याल तुझ को दिल-ए-बे-क़रार किस का था
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मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया
उम्र मेरी थी मगर उस को बसर उस ने किया
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एक वारिस हमेशा होता है
तख़्त ख़ाली रहा नहीं करता
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शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही
रात बादल इस तरह आए कि मैं तो डर गया
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चाहता हूँ मैं 'मुनीर' इस उम्र के अंजाम पर
एक ऐसी ज़िंदगी जो इस तरह मुश्किल न हो
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है 'मुनीर' तेरी निगाह में
कोई बात गहरे मलाल की
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मिलती नहीं पनाह हमें जिस ज़मीन पर
इक हश्र उस ज़मीं पे उठा देना चाहिए
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रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर
इन रोज़ ओ शब में मुझ को ये फ़ुर्सत नहीं मिली
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जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा
काटता हूँ ज़िंदगी भर मैं ने जो बोया नहीं
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क्यूँ 'मुनीर' अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
जितना तक़दीर में लिक्खा है अदा होता है
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दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़
याद पीछे खींचती है आस आगे की तरफ़
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अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं
इन नेकियों को हम तो दरिया में डाल आए
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