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नज़्म
शिकवा
थी तो मौजूद अज़ल से ही तिरी ज़ात-ए-क़दीम
फूल था ज़ेब-ए-चमन पर न परेशाँ थी शमीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है
ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है