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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अभिनंदन पांडे

1988 | दिल्ली, भारत

नई नस्ल के अहम शायरों में शामिल, शायरी में संजीदा मौज़ूआत, शुऊर-ए-ज़ात और नर्म एहसासात का बयान

नई नस्ल के अहम शायरों में शामिल, शायरी में संजीदा मौज़ूआत, शुऊर-ए-ज़ात और नर्म एहसासात का बयान

अभिनंदन पांडे के शेर

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ग़ौर से देखते रहने की सज़ा पाई है

तेरी तस्वीर इन आँखों में उतर आई है

सवाल गए आँखों से छिन के होंटों पर

हमें जवाब देने का फ़ाएदा तो मिला

नस्ल-ए-आदम रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को कर लेगी तबाह

इतनी सख़्ती से क़यामत पेश आएगी पूछ

दरमियाँ जो जिस्म का पर्दा है कैसे होगा चाक

मौत किस तरकीब से हम को मिलाएगी पूछ

ख़ुद-कुशी का फ़ैसला ये सोच कर हम ने किया

कौन करता ज़िंदगी का मौत से अच्छा इलाज

जब यहाँ रहने के सब अस्बाब यकजा कर लिए

तब खुला मुझ पर कि मैं दुनिया का बाशिंदा था

खींच लाई जानिब-ए-दरिया हमें भी तिश्नगी

अब गुलू-ए-ख़ुश्क का ख़ंजर पे रम होने को है

चाहें तो इस को तेग़-ए-ख़मोशी से काट दें

लेकिन जुनूँ से जंग ज़बानी करेंगे हम

उस ने तो यूँ ही पूछ लिया था कि कोई है

महफ़िल में उठा शोर ब-यक-लख़्त कि हम हम

मैं तिरे शोख़ लबों पर तो अभी आया हूँ

इस से पहले तिरी आँखों में सवालात सा था

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