बेख़ुद देहलवी के शेर
नज़र कहीं है मुख़ातब किसी से हैं दिल में
जवाब किस को मिला है सवाल किस का था
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हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
यार अपना तो ये हिसाब रहा
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उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
कहाँ का तजाहुल कहाँ का तग़ाफ़ुल
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मिला के ख़ाक में सर्मा-ए-दिल-ए-'बेख़ुद'
वो पूछते हैं बताओ ये माल किस का था
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आइना देख के ख़ुर्शीद पे करते हैं नज़र
फिर छुपा लेते हैं वो चेहरा-ए-अनवर अपना
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क़यामत है तिरी उठती जवानी
ग़ज़ब ढाने लगीं नीची निगाहें
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रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
ख़ुदा आबाद रखे मैं तो कहता हूँ जहन्नम को
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क्या कह दिया ये आप ने चुपके से कान में
दिल का सँभालना मुझे दुश्वार हो गया
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हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की
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नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ वफ़ा मुझ में कहाँ
कम से कम दिल अभी सौ बार तो आने दीजे
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कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
ऊपरी दिल से वो मिलता है तो क्या मिलता है
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ज़माना हम ने ज़ालिम छान मारा
नहीं मिलतीं तिरे मिलने की राहें
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तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी
न थे तुम चोर दिल के लो इधर देखो ये क्या निकला
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इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
ये सितारे कहीं मिल जाएँ न सय्यारों में
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हमें इस्लाम उसे इतना तअल्लुक़ है अभी बाक़ी
बुतों से जब बिगड़ती है ख़ुदा को याद करते हैं
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ये कह के मेरे सामने टाला रक़ीब को
मुझ से कभी की जान न पहचान जाइए
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टैग : रक़ीब
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चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
ज़ुल्म भी मुझ पे कभी सोच-समझ कर न हुआ
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आइना देख कर वो ये समझे
मिल गया हुस्न-ए-बे-मिसाल हमें
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सख़्त-जाँ हूँ मुझे इक वार से क्या होता है
ऐसी चोटें कोई दो-चार तो आने दीजे
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न देखे होंगे रिंद-ए-ला-उबाली तुम ने 'बेख़ुद' से
कि ऐसे लोग अब आँखों से ओझल होते जाते हैं
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टैग : तअल्ली
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'बेख़ुद' ज़रूर रात को सोए हो पी के तुम
ये तो कहो नमाज़ पढ़ी या क़ज़ा हुई
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ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला
बहर-ए-हस्ती का बहुत दूर किनारा निकला
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टैग : ग़म
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पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल
वो बुत बन गए हैं सुने जाएँगे
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टैग : तग़ाफ़ुल
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अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
आईने उस ने लगा रक्खे हैं दीवारों में
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तिरी तेग़ का लाल कर दूँगा मुँह
जो ये खेलने मुझ से आएगी रंग
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वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
जवानी अदाएँ सिखाती हैं क्या क्या
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जवाब सोच के वो दिल में मुस्कुराते हैं
अभी ज़बान पे मेरी सवाल भी तो न था
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टैग : सवाल
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दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'
अब किसी पर फ़िदा नहीं होता
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राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे
आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद
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टैग : आदमी
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आप को रंज हुआ आप के दुश्मन रोए
मैं पशेमान हुआ हाल सुना कर अपना
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दी क़सम वस्ल में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा
तुझ को आता है ख़ुदा याद हमारे होते
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महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
या हम नए हैं या तिरी आदत बदल गई
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मौत आ रही है वादे पे या आ रहे हो तुम
कम हो रहा है दर्द दिल-ए-बे-क़रार का
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चलने की नहीं आज कोई घात किसी की
सुनने के नहीं वस्ल में हम बात किसी की
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दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
जो हमारा न हुआ कब वो तुम्हारा होगा
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टैग : दिल
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कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
छेड़ आपस में सर-ए-बाज़ार हो कर रह गई
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टैग : रिंद
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सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
कह दिया उस ने कि फिर हम क्या करें
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टैग : तग़ाफ़ुल
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झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले
अल्लाह बिगाड़े न बनी बात किसी की
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बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों
कोई पहलू तो रहे बात बदलने के लिए
व्याख्या
शे’र में जिस बिंदु का वर्णन किया गया है उसी ने इसे दिलचस्प बनाया है। इसमें शब्द बात की यद्यपि तीन बार और पहलू की दो बार पुनरावृत्ति हुई है मगर शब्दों की तुकबंदी और अभिव्यक्ति के प्रवाह की विशेषता ने शे’र में आनंद पैदा किया है। पहलू के अनुरूप शब्द बदलने से शे’र की स्थिति का आभास होता है।
दरअसल शे’र में जिस बिंदु का वर्णन किया गया है, हालांकि इसकी कोई विशेषता नहीं बल्कि सामान्य है मगर जिस अंदाज़ से शायर ने इस बिंदु को व्यक्त किया है वो सरल होने के बावजूद इस बिंदु को दुर्लभ बना देता है।
शे’र का अर्थ यह है कि बात को कुछ ऐसे प्रतीकात्मक ढंग से कहना चाहिए कि इससे सौ तरह के विभिन्न अर्थ निकलते हों। क्योंकि अर्थ की दृष्टि से एकहरी बात कहना बुद्धिमान लोगों की शैली नहीं बल्कि वे एक बात में सौ बिंदुओं का सार व्यक्त करते हैं। इस तरह से सुनने वालों को बहस करने या स्पष्टीकरण मांगने के लिए कोई न कोई पहलू हाथ आजाता है। और जब बात के पहलू प्रचुर हों तो बात बदलने में आसानी होजाती है। अर्थात बिंदु से बिंदु बरामद होता है।
शफ़क़ सुपुरी
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दिल वो काफ़िर है कि मुझ को न दिया चैन कभी
बेवफ़ा तू भी इसे ले के पशेमाँ होगा
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तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'
कोई बोतल तो नहीं तुम ने छुपा रक्खी है
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टैग : शराब
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दिल वो काफ़िर है कि मुझ को न दिया चीन कभी
बेवफ़ा तू भी उसे ले के पशेमाँ होगा
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हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
उसी का नाम जन्नत रख दिया बोतल जहाँ रख दी
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तुम को आशुफ़्ता-मिज़ाजों की ख़बर से क्या काम
तुम सँवारा करो बैठे हुए गेसू अपने
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नामा-बर ये तो कही बात पते की तू ने
ज़िक्र उस बज़्म में रहता तो है अक्सर अपना
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दिल चुरा कर ले गया था कोई शख़्स
पूछने से फ़ाएदा, था कोई शख़्स
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मोहब्बत और मजनूँ हम तो सौदा इस को कहते हैं
फ़िदा लैला पे था आँखों का अंधा इस को कहते हैं
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मेरा हर शेर है इक राज़-ए-हक़ीक़त 'बेख़ुद'
मैं हूँ उर्दू का 'नज़ीरी' मुझे तू क्या समझा
ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रब
वो खड़े हैं तिरी रहमत के तलबगार जुदा
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अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
मालूम हुआ इश्क़ के क़ाबिल तो नहीं हम
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