फ़ना निज़ामी कानपुरी के शेर
तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते
याद आते हो तुम ख़ुद ही हम याद नहीं करते
कोई पाबंद-ए-मोहब्बत ही बता सकता है
एक दीवाने का ज़ंजीर से रिश्ता क्या है
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कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते
इक तुझ को देखने के लिए बज़्म में मुझे
औरों की सम्त मस्लहतन देखना पड़ा
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टैग : महबूब
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अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
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साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पर
अफ़्सोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते
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जब सफ़ीना मौज से टकरा गया
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया
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टैग : ख़ुदा
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मैं उस के सामने से गुज़रता हूँ इस लिए
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का एहसास मर न जाए
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टैग : एहसास
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सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त
मेरे ख़ुलूस ने मिरा जीना मुहाल कर दिया
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तरतीब दे रहा था मैं फ़हरिस्त-ए-दुश्मनान
यारों ने इतनी बात पे ख़ंजर उठा लिया
इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँ
ऐ 'फ़ना' रहज़न को भी सदमा हुआ
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कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
जब तक उलझे न काँटों से दामन
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दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा कि एक दिन
इंसान की तलाश में इंसान जाएगा
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ऐ जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
हसरत भी रहे बाक़ी अरमाँ भी निकल जाए
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दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा
घर को लगा के आग ये मेहमान जाएगा
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ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
राह-रौ और भी थक जाता है आराम के बा'द
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सब होंगे उस से अपने तआरुफ़ की फ़िक्र में
मुझ को मिरे सुकूत से पहचान जाएगा
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तर्क-ए-तअल्लुक़ात को इक लम्हा चाहिए
लेकिन तमाम उम्र मुझे सोचना पड़ा
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आज उस से मैं ने शिकवा किया था शरारतन
किस को ख़बर थी इतना बुरा मान जाएगा
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टैग : शिकवा
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मौजों के इत्तिहाद का आलम न पूछिए
क़तरा उठा और उठ के समुंदर उठा लिया
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ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है
ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ
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टैग : ग़म
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वो आँख क्या जो आरिज़ ओ रुख़ पर ठहर न जाए
वो जल्वा क्या जो दीदा ओ दिल में उतर न जाए
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तर्क-ए-वतन के बाद ही क़द्र-ए-वतन हुई
बरसों मिरी निगाह में दीवार-ओ-दर फिरे
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क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात भी क्या चीज़ है 'फ़ना'
राह-ए-फ़रार मिल न सकी उम्र-भर फिरे
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बे-तकल्लुफ़ वो औरों से हैं
नाज़ उठाने को हम रह गए
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गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं
फिर भी ख़ाली है गुलचीं का दामन
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टैग : फ़ेमस शायरी
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रहता है वहाँ ज़िक्र-ए-तुहूर-ओ-मय-ए-कौसर
हम आज से काबे को भी मय-ख़ाना कहेंगे
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जल्वा हो तो जल्वा हो पर्दा हो तो पर्दा हो
तौहीन-ए-तजल्ली है चिलमन से न झाँका कर
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यूँ दिखाता है आँखें हमें बाग़बाँ
जैसे गुलशन पे कुछ हक़ हमारा नहीं
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तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ
अब के किसी बे-नाम से मौसम की तरह आ
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रिंद जन्नत में जा भी चुके
वाइज़-ए-मोहतरम रह गए
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मैं चला आया तिरा हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल ले कर
अब तिरी अंजुमन-ए-नाज़ में रक्खा क्या है
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इस मौज की टक्कर से साहिल भी लरज़ता है
कुछ रोज़ जो तूफ़ाँ की आग़ोश में पल जाए
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ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ
छोड़ आए आशियाँ जलता हुआ
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तू कुछ तो मिरे ज़ब्त-ए-मोहब्बत का सिला दे
हंगामा-ए-'फ़ना दीदा-ए-पुर-नम की तरह आ
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मुझे रुतबा-ए-ग़म बताना पड़ेगा
अगर मेरे पीछे ज़माना पड़ेगा
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