जुरअत क़लंदर बख़्श के शेर
हम हैं वो जिंस कि कहते हैं जिसे ग़म 'जुरअत'
है मोहब्बत के सिवा कौन ख़रीदार अपना
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दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की
दिवाना है व-लेकिन बात करता है ठिकाने की
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टैग : दिल
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क़फ़स में हम-सफ़ीरो कुछ तो मुझ से बात कर जाओ
भला मैं भी कभी तो रहने वाला था गुलिस्ताँ का
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रखे है लज़्ज़त-ए-बोसा से मुझ को गर महरूम
तो अपने तू भी न होंटों तलक ज़बाँ पहुँचा
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टैग : किस
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सीखिए 'जुरअत' किसी से कोई बाज़ी कोई खेल
इस बहाने से कोई वाँ हम को ले तो जाएगा
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आलम-ए-मस्ती में मेरे मुँह से कुछ निकला जो रात
बोल उठा तेवरी चढ़ा कर वो बुत-ए-मय-ख़्वार चुप
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दोस्तो टाँके न दो एहसान टुक इतना करो
ले चलो मुझ को वहीं तुम मैं जहाँ टुकड़े हुआ
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दूरी-ए-यार से होवे तो किसी शक्ल नजात
रोज़ हम इस लिए हो आते हैं दो चार के पास
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लाश को मेरी छुपा कर इक कुएँ में डाल दो
यारो मैं कुश्ता हूँ इक पर्दा-नशीं की चाह का
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ज़ाहिदा ज़ोहद-ओ-रियाज़त हो मुबारक तुझ को
क्यूँ कि तक़्वा से मियाँ मेरी तो बहबूद नहीं
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छोड़ कर तस्बीह ली ज़ुन्नार उस बुत के लिए
थे तो अहल-ए-दीं पर इस दिल ने बरहमन कर दिया
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की बे-ज़री फ़लक ने हवाले नजीब के
पाजी हर एक साहब-ए-ज़र आए है नज़र
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बाल हैं बिखरे बैंड हैं टूटे कान में टेढ़ा बाला है
'जुरअत' हम पहचान गए हैं दाल में काला काला है
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अहवाल क्या बयाँ मैं करूँ हाए ऐ तबीब
है दर्द उस जगह कि जहाँ का नहीं इलाज
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टैग : अहवाल
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ता-सुब्ह मिरी आह-ए-जहाँ-सोज़ से कल रात
क्या गुम्बद-ए-अफ़्लाक ये हम्माम सा था गर्म
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शब-ए-हिज्र थी और मैं रो रहा था
कोई जागता था कोई सो रहा था
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टैग : हिज्र
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यूँ उठे वो बज़्म में ताज़ीम को ग़ैरों की हाए
हम-नशीं तू बैठ याँ हम से न बैठा जाएगा
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आँख उठा कर उसे देखूँ हूँ तो नज़रों में मुझे
यूँ जताता है कि क्या तुझ को नहीं डर मेरा
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टैग : दीदार
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आँख लगती नहीं 'जुरअत' मिरी अब सारी रात
आँख लगते ही ये कैसा मुझे आज़ार लगा
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मुझ मस्त को क्यूँ भाए न वो साँवली सूरत
जी दौड़े है मय-कश का ग़िज़ा-ए-नमकीं पर
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ग़म मुझे ना-तवान रखता है
इश्क़ भी इक निशान रखता है
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उस शख़्स ने कल हातों ही हातों में फ़लक पर
सौ बार चढ़ाया मुझे सौ बार उतारा
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चाह की चितवन मेरी आँख उस की शरमाई हुई
ताड़ ली मज्लिस में सब ने सख़्त रुस्वाई हुई
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टैग : रुस्वाई
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ये सवाद-ए-शहर और ऐसा कहाँ हुस्न-ए-मलीह
शश-जिहत में मुल्क देखा ही नहीं पंजाब सा
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हाथ मलते हुए आज आते हैं सब रह-गुज़रे
जा-ए-हैरत है कि मैं क्यूँ सर-ए-बाज़ार न था
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लाज़िम है कि आग़ाज़ हो अंजाम से पहले
ले लेने दो बोसा मुझे दुश्नाम से पहले
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क़हर थीं दर-पर्दा शब मज्लिस में उस की शोख़ियाँ
ले गया दिल सब के वो और सब से शरमाता रहा
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आलूदा-ब-ख़ूँ चश्म से टपके है जो आँसू
सब कहते हैं हैरत से ये मोती है कि मूँगा
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टैग : आँसू
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नासेह बहुत ब-फ़िक्र-ए-रफ़ू था पे जूँ हुबाब
मुतलक़ न उस के हाथ मिरा पैरहन लगा
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हिज्र में मुज़्तरिब सा हो हो के
चार-सू देखता हूँ रो रो के
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टैग : हिज्र
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जो कि सज्दा न करे बुत को मिरे मशरब में
आक़िबत उस की किसी तौर से महमूद नहीं
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टैग : बुत
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इस शोला-ख़ू को देख हुआ शैख़ का ये हाल
जुब्बे को आग लग उठी अम्मामा जल गया
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हशमत-ए-दुनिया की कुछ दिल में हवस बाक़ी नहीं
इश्क़ की दौलत से हैं ऐसे ही आली-जाह हम
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जिस नूर के बक्के को मह-ओ-ख़ुर ने न देखा
कम-बख़्त ये दिल लोटे है उस पर्दा-नशीं पर
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आया था शब को छुप के वो रश्क-ए-चमन सो आह
फैली ये घर में बू कि मोहल्ला महक गया
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चुपके चुपके रोते हैं मुँह पर दुपट्टा तान कर
घर जो याद आया किसी का अपने घर में आन कर
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ख़लल इक पड़ गया नाहक़ गुल ओ बुलबुल की सोहबत में
अबस खोला था तू ने बाग़ में ऐ गुल बदन अपना
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इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई
मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं
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गर कहीं पाऊँ अकेला तो बलाएँ ले कर
किस मज़े से तुझे लूँ छाती से दिल-दार लगा
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वाँ से आया है जवाब-ए-ख़त कोई सुनियो तो ज़रा
मैं नहीं हूँ आप मैं मुझ से न समझा जाएगा
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टैग : ख़त
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एक तो मर्ज़ी न थी जाने को मेरी उस तरफ़
तिस पे दिल आँखों से बाराँ ख़ूँ का बरसाता रहा
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हैराँ न हो सर देख मिरा अपनी ज़मीं पर
देखो तो लिखा क्या है मिरी लौह-ए-जबीं पर
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तुझ सा जो कोई तुझ को मिल जाएगा तो बातें
मेरी तरह से तू भी चुपका सुना करेगा
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दौर में क्या उस के कोई नौबत-ए-इशरत बजाए
जब कि ख़ुद गर्दूं हो इक औंधा सा नक़्क़ारा पड़ा
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जल्दी तलब-ए-बोसा पे कीजे तो कहे वाह
ऐसा इसे क्या समझे हो तुम मुँह का निवाला
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टैग : किस
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आस्तीन-ए-मौज दरिया से जुदा होती नहीं
रब्त तेरा चश्म से क्यूँ आस्तीं जाता रहा
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लब-ए-ख़याल से उस लब का जो लिया बोसा
तो मुँह ही मुँह में अजब तरह का मज़ा आया
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देखो दुज़्दीदा निगह से तो निकल कर इक रात
चोर सा कौन खड़ा है पस-ए-दीवार लगा
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जो आज चढ़ाते हैं हमें अर्श-ए-बरीं पर
दो दिन को उतारेंगे वही लोग ज़मीं पर
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जहाँ के बाग़ में हम भी बहार दिखलाते
ये रंग-ए-ग़ुंचा जो अपनी गिरह में ज़र होता
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