सीमाब अकबराबादी के शेर
कहानी मेरी रूदाद-ए-जहाँ मालूम होती है
जो सुनता है उसी की दास्ताँ मालूम होती है
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हाए 'सीमाब' उस की मजबूरी
जिस ने की हो शबाब में तौबा
ख़ुलूस-ए-दिल से सज्दा हो तो उस सज्दे का क्या कहना
वहीं काबा सरक आया जबीं हम ने जहाँ रख दी
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कहानी है तो इतनी है फ़रेब-ए-ख़्वाब-ए-हस्ती की
कि आँखें बंद हूँ और आदमी अफ़्साना हो जाए
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क़फ़स की तीलियों में जाने क्या तरकीब रक्खी है
कि हर बिजली क़रीब-ए-आशियाँ मालूम होती है
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टैग : बिजली
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दिल-ए-आफ़त-ज़दा का मुद्दआ क्या
शिकस्ता साज़ क्या उस की सदा क्या
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रोज़ कहता हूँ कि अब उन को न देखूँगा कभी
रोज़ उस कूचे में इक काम निकल आता है
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वो आईना हो या हो फूल तारा हो कि पैमाना
कहीं जो कुछ भी टूटा मैं यही समझा मिरा दिल है
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ये शराब-ए-इश्क़ ऐ 'सीमाब' है पीने की चीज़
तुंद भी है बद-मज़ा भी है मगर इक्सीर है
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परेशाँ होने वालों को सुकूँ कुछ मिल भी जाता है
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती
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ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर डुबो दें ये तो मुमकिन है
मेरी वज्ह-ए-तबाही सिर्फ़ तूफ़ाँ हो नहीं सकता
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तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी
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टैग : निगाह
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ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
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क्या ढूँढने जाऊँ मैं किसी को
अपना मुझे ख़ुद पता नहीं है
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मंज़िल मिली मुराद मिली मुद्दआ मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तिरा नक़्श-ए-पा मिला
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टैग : मंज़िल
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है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू
मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे
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टैग : आरज़ू
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मिरी दीवानगी पर होश वाले बहस फ़रमाएँ
मगर पहले उन्हें दीवाना बनने की ज़रूरत है
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बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
शान तेरी है किबरियाई की
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देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे
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दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में
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टैग : बेसबाती
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दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था टूट गया देख-भाल में
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टैग : बिसात
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क्यूँ जाम-ए-शराब-ए-नाब माँगूँ
साक़ी की नज़र में क्या नहीं है
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देखते रहते हैं छुप-छुप के मुरक़्क़ा तेरा
कभी आती है हवा भी तो छुपा लेते हैं
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'सीमाब' दिल हवादिस-ए-दुनिया से बुझ गया
अब आरज़ू भी तर्क-ए-तमन्ना से कम नहीं
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मिरी ख़ामोशियों पर दुनिया मुझ को तअन देती है
ये क्या जाने कि चुप रह कर भी की जाती हैं तक़रीरें
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टैग : ख़ामोशी
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लहू से मैं ने लिखा था जो कुछ दीवार-ए-ज़िंदाँ पर
वो बिजली बन के चमका दामन-ए-सुब्ह-ए-गुलिस्ताँ पर
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सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर
जैसे चमन में मेरा कोई आशियाँ बना
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गुनाहों पर वही इंसान को मजबूर करती है
जो इक बे-नाम सी फ़ानी सी लज़्ज़त है गुनाहों में
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बरहमन कहता था बरहम शैख़ बोल उठा अहद
हर्फ़ के इक फेर से दोनों में झगड़ा हो गया
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हुस्न में जब नाज़ शामिल हो गया
एक पैदा और क़ातिल हो गया
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ये मेरी तीरा-नसीबी ये सादगी ये फ़रेब
गिरी जो बर्क़ मैं समझा चराग़-ए-ख़ाना मिला
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माज़ी-ए-मरहूम की नाकामियों का ज़िक्र छोड़
ज़िंदगी की फ़ुर्सत-ए-बाक़ी से कोई काम ले
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मैं देखता हूँ आप को हद्द-ए-निगाह तक
लेकिन मिरी निगाह का क्या ए'तिबार है
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उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
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नशात-ए-हुस्न हो जोश-ए-वफ़ा हो या ग़म-ए-इश्क़
हमारे दिल में जो आए वो आरज़ू हो जाए
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तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त
अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं
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टैग : तन्हाई
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रंग भरते हैं वफ़ा का जो तसव्वुर में तिरे
तुझ से अच्छी तिरी तस्वीर बना लेते हैं
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वो दुनिया थी जहाँ तुम बंद करते थे ज़बाँ मेरी
ये महशर है यहाँ सुननी पड़ेगी दास्ताँ मेरी
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जब दिल पे छा रही हों घटाएँ मलाल की
उस वक़्त अपने दिल की तरफ़ मुस्कुरा के देख
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चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है
क़फ़स में रह के क़द्र-ए-आशियाँ मालूम होती है
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मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी आता है इंसाँ पर
सितारों की चमक से चोट लगती है रग-ए-जाँ पर
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तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल में अँगारे भरे थे लग गई होगी
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मरकज़ पे अपने धूप सिमटती है जिस तरह
यूँ रफ़्ता रफ़्ता तेरे क़रीब आ रहा हूँ मैं
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अब वहाँ दामन-कशी की फ़िक्र दामन-गीर है
ये मिरे ख़्वाब-ए-मोहब्बत की नई ताबीर है
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सहरा से बार बार वतन कौन जाएगा
क्यूँ ऐ जुनूँ यहीं न उठा लाऊँ घर को मैं
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हो गए रुख़्सत 'रईस' ओ 'आली' ओ 'वासिफ़' 'निसार'
रफ़्ता रफ़्ता आगरा 'सीमाब' सूना हो गया
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टैग : तीर
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