Ghaalib ke Sher agar Samajh naa aayen to do guna maza dete hain
Mirza Ghalib is known for the layered meanings hidden in his couplets. We are bringing to you those couplets which are layered and usually used as idioms among people.
ishq ne 'ġhālib' nikammā kar diyā
varna ham bhī aadmī the kaam ke
Ghalib, a worthless person, this love has made of me
otherwise a man of substance I once used to be
ishq ne 'ghaalib' nikamma kar diya
warna hum bhi aadmi the kaam ke
Ghalib, a worthless person, this love has made of me
otherwise a man of substance I once used to be
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un ke dekhe se jo aa jaatī hai muñh par raunaq
vo samajhte haiñ ki bīmār kā haal achchhā hai
un ke dekhe se jo aa jati hai munh par raunaq
wo samajhte hain ki bimar ka haal achchha hai
ragoñ meñ dauḌte phirne ke ham nahīñ qaa.il
jab aañkh hī se na Tapkā to phir lahū kyā hai
merely because it courses through the veins, I'm not convinced
if it drips not from one's eyes blood cannot be held true
ragon mein dauDte phirne ke hum nahin qail
jab aankh hi se na Tapka to phir lahu kya hai
merely because it courses through the veins, I'm not convinced
if it drips not from one's eyes blood cannot be held true
ham ko un se vafā kī hai ummīd
jo nahīñ jānte vafā kyā hai
From her I hope for constancy
who knows it not, to my dismay
hum ko un se wafa ki hai ummid
jo nahin jaante wafa kya hai
From her I hope for constancy
who knows it not, to my dismay
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na thā kuchh to ḳhudā thā kuchh na hotā to ḳhudā hotā
Duboyā mujh ko hone ne na hotā maiñ to kyā hotā
In nothingness God was there, if naught he would persist
Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist
EXPLANATION
यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी न होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति न जाने क्या होती।
इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।
हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।
इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी न होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला व तन्हा मौजूद रहेगा।
इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद न रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।
Shafaq Sopori
na tha kuchh to KHuda tha kuchh na hota to KHuda hota
Duboya mujh ko hone ne na hota main to kya hota
In nothingness God was there, if naught he would persist
Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist
EXPLANATION
यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी न होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति न जाने क्या होती।
इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।
हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।
इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी न होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला व तन्हा मौजूद रहेगा।
इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद न रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।
Shafaq Sopori
merī qismat meñ ġham gar itnā thā
dil bhī yā-rab ka.ī diye hote
if so much pain my fate ordained
I, many hearts should have obtained
meri qismat mein gham gar itna tha
dil bhi ya-rab kai diye hote
if so much pain my fate ordained
I, many hearts should have obtained
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Tags : Diland 1 more
aage aatī thī hāl-e-dil pe hañsī
ab kisī baat par nahīñ aatī
nothing now could even make me smile,
I once could laugh at my heart's own plight
aage aati thi haal-e-dil pe hansi
ab kisi baat par nahin aati
nothing now could even make me smile,
I once could laugh at my heart's own plight
ham vahāñ haiñ jahāñ se ham ko bhī
kuchh hamārī ḳhabar nahīñ aatī
hum wahan hain jahan se hum ko bhi
kuchh hamari KHabar nahin aati
ā.īna dekh apnā sā muñh le ke rah ga.e
sāhab ko dil na dene pe kitnā ġhurūr thā
aaina dekh apna sa munh le ke rah gae
sahab ko dil na dene pe kitna ghurur tha
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Tag : Aaina
tire va.ade par jiye ham to ye jaan jhuuT jaanā
ki ḳhushī se mar na jaate agar e'tibār hotā
that your promise made me live, let that not deceive
happily my life I'd give, If I could but believe
tere wade par jiye hum to ye jaan jhuT jaana
ki KHushi se mar na jate agar e'tibar hota
that your promise made me live, let that not deceive
happily my life I'd give, If I could but believe
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Tags : Bharosaand 1 more
mehrbāñ ho ke bulā lo mujhe chāho jis vaqt
maiñ gayā vaqt nahīñ huuñ ki phir aa bhī na sakūñ
mehrban ho ke bula lo mujhe chaho jis waqt
main gaya waqt nahin hun ki phir aa bhi na sakun
bak rahā huuñ junūñ meñ kyā kyā kuchh
kuchh na samjhe ḳhudā kare koī
Lord I pray that no one comprehends
All that I rant and rave in ecstasy
bak raha hun junun mein kya kya kuchh
kuchh na samjhe KHuda kare koi
Lord I pray that no one comprehends
All that I rant and rave in ecstasy
yā-rab vo na samjhe haiñ na samjheñge mirī baat
de aur dil un ko jo na de mujh ko zabāñ aur
ya-rab wo na samjhe hain na samjhenge meri baat
de aur dil un ko jo na de mujh ko zaban aur
ḳhat likheñge garche matlab kuchh na ho
ham to āshiq haiñ tumhāre naam ke
KHat likhenge garche matlab kuchh na ho
hum to aashiq hain tumhaare nam ke
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Tag : Khat
zindagī yuuñ bhī guzar hī jaatī
kyuuñ tirā rāhguzar yaad aayā
Life would in any case pass by and by
Your street I now recall, tell me why
zindagi yun bhi guzar hi jati
kyun tera rahguzar yaad aaya
Life would in any case pass by and by
Your street I now recall, tell me why
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Tags : Dardand 2 more
aaj ham apnī pareshāni-e-ḳhātir un se
kahne jaate to haiñ par dekhiye kyā kahte haiñ
aaj hum apni pareshani-e-KHatir un se
kahne jate to hain par dekhiye kya kahte hain
tum jaano tum ko ġhair se jo rasm-o-rāh ho
mujh ko bhī pūchhte raho to kyā gunāh ho
your wish, if friendly with my rival you do choose to be
what sin accrues if you still keep enquiring after me
tum jaano tum ko ghair se jo rasm-o-rah ho
mujh ko bhi puchhte raho to kya gunah ho
your wish, if friendly with my rival you do choose to be
what sin accrues if you still keep enquiring after me
kis se mahrūmī-e-qismat kī shikāyat kiije
ham ne chāhā thā ki mar jaa.eñ so vo bhī na huā
kis se mahrumi-e-qismat ki shikayat kije
hum ne chaha tha ki mar jaen so wo bhi na hua
kaam us se aa paḌā hai ki jis kā jahān meñ
leve na koī naam sitam-gar kahe baġhair
kaam us se aa paDa hai ki jis ka jahan mein
lewe na koi nam sitam-gar kahe baghair
lāzim thā ki dekho mirā rastā koī din aur
tanhā ga.e kyuuñ ab raho tanhā koī din aur
lazim tha ki dekho mera rasta koi din aur
tanha gae kyun ab raho tanha koi din aur