फ़रहत एहसास के शेर
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
ये बे-कनार बदन कौन पार कर पाया
बहे चले गए सब लोग इस रवानी में
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टैग : बदन
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चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
ज़ेहन मुसलसल क़िस्से सोचें होंठ मुसलसल ज़िक्र करें
सुब्ह तलक ज़िंदा रहना है कहीं कहानी कम न पड़े
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मोहब्बत फूल बनने पर लगी थी
पलट कर फिर कली कर ली है मैं ने
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टैग : नज़ाकत
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किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं
वो रंग है ही नहीं जो तिरे बदन में नहीं
उस से मिलने के लिए जाए तो क्या जाए कोई
उस ने दरवाज़े पे आईना लगा रक्खा है
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जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज
ख़ुद को बहाल करना है खोना नहीं है आज
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बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़र
वो आईने में तो बस मुख़्तसर सा रहता है
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टैग : हुस्न
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मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है
तुम्हारे साथ मिल कर ख़ुद को धोना चाहता हूँ मैं
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जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
तो अपने ख़्वाब की पलकें झपकने लगता हूँ
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उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं
तो उस ने आधा उजाड़ रक्खा है और आधा बना दिया है
दुनिया से कहो जो उसे करना है वो कर ले
अब दिल में मिरे वो अलल-एलान रहेगा
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तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात
मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता
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उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल में
अब जहाँ मेरे इशारे भी नहीं जा सकते
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टैग : तग़ाफ़ुल
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मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए
रोको कि मिरे ख़ून की रफ़्तार बहुत है
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क्या बदन है कि ठहरता ही नहीं आँखों में
बस यही देखता रहता हूँ कि अब क्या होगा
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टैग : बदन
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कहाँ का इश्क़ हवस तक भी हो नहीं सकती
यही रहेगा जो अंदाज़ मुजरिमाना मिरा
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मेरी इक उम्र और इक अहद की तारीख़ रक़म है जिस पर
कैसे रोकूँ कि वो आँसू मिरी आँखों से गिरा जाता है
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टैग : आँसू
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शुस्ता ज़बाँ शगुफ़्ता बयाँ होंठ गुल-फ़िशाँ
सारी हैं तुझ में ख़ूबियाँ उर्दू ज़बान की
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टैग : उर्दू
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ऐ सदफ़ सुन तुझे फिर याद दिला देता हूँ
मैं ने इक चीज़ तुझे दी थी गुहर करने को
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सर सलामत लिए लौट आए गली से उस की
यार ने हम को कोई ढंग की ख़िदमत नहीं दी
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सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाह
तेरे धोके में किसी और के शाने लग जाएँ
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टैग : ज़ुल्फ़
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सख़्त सर्दी में ठिठुरती है बहुत रूह मिरी
जिस्म-ए-यार आ कि बेचारी को सहारा मिल जाए
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टैग : सर्दी
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ये धड़कता हुआ दिल उस के हवाले कर दूँ
एक भी शख़्स अगर शहर में ज़िंदा मिल जाए
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रास्ता पानी माँगता है
अपने पाँव का छाला मार
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टैग : आबला
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अब देखता हूँ मैं तो वो अस्बाब ही नहीं
लगता है रास्ते में कहीं खुल गया बदन
एक बार उस ने बुलाया था तो मसरूफ़ था मैं
जीते-जी फिर कभी बारी ही नहीं आई मिरी
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ऐ ख़ुदा मेरी रगों में दौड़ जा
शाख़-ए-दिल पर इक हरी पत्ती निकाल
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टैग : ख़ुदा
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फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस ने
बस एक महीना ही तो रमज़ान रहेगा
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मैं बिछड़ों को मिलाने जा रहा हूँ
चलो दीवार ढाने जा रहा हूँ
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बचा के लाएँ किसी भी यतीम बच्चे को
और उस के हाथ से तख़लीक़-ए-काइनात करें
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फिर तुझे छू के देखता हूँ मैं
फिर से क़िंदील सी जलाई है
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ये तेरा मेरा झगड़ा है दुनिया को बीच में क्यूँ डालें
घर के अंदर की बातों पर ग़ैरों को गवाह नहीं करते
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ये शहर वो है कि कोई ख़ुशी तो क्या देता
किसी ने दिल भी दुखाया नहीं बहुत दिन से
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तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
जो अब तक पा चुका हूँ उस को खोना चाहता हूँ मैं
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वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
बन न पाया हीर, राँझा अब भी राँझा है बहुत
देख वारिस-शाह तेरी हीर आधी रह गई
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पूरी तरह से अब के तय्यार हो के निकले
हम चारागर से मिलने बीमार हो के निकले
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एक बोसे के भी नसीब न हों
होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों
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लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़
मसअले जैसे रवाना हों किसी हल की तरफ़
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इसे बच्चों के हाथों से उठाओ
ये दुनिया इस क़दर भारी नहीं है
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तभी वहीं मुझे उस की हँसी सुनाई पड़ी
मैं उस की याद में पलकें भिगोने वाला था
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मैं जब कभी उस से पूछता हूँ कि यार मरहम कहाँ है मेरा
तो वक़्त कहता है मुस्कुरा कर जनाब तय्यार हो रहा है
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वो अक़्ल-मंद कभी जोश में नहीं आता
गले तो लगता है आग़ोश में नहीं आता
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जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हम ने किया
शहर जैसा एक आदम-ख़ोर पैदा कर लिया
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टैग : पर्यावरण
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धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
मैं ने फिर साया-ए-दीवार को ज़हमत नहीं दी
हमें जब अपना तआ'रुफ़ कराना पड़ता है
न जाने कितने दुखों को दबाना पड़ता है
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आँख भर देख लो ये वीराना
आज कल में ये शहर होता है
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वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा
ये जो तन्हाई बरसती है सज़ा मेरी है
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