आसी ग़ाज़ीपुरी के शेर
ख़ुदा से तिरा चाहना चाहता हूँ
मेरा चाहना देख क्या चाहता हूँ
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ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई
इश्क़ कहता है दो-आलम से जुदा हो जाओ
हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है
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बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे
वो यहाँ तक जो आ नहीं सकते
क्या मुझे भी बुला नहीं सकते
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लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो
कि शाम सुब्ह के बाद आए सुब्ह शाम के बाद
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वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
ये सच है तो उन का भरोसा नहीं है
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टैग : भरोसा
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दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल
हाथ आ जाती है खो देने से दौलत दिल की
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टैग : दिल
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सुब्ह तक वो भी न छोड़ी तू ने ऐ बाद-ए-सबा
यादगार-ए-रौनक़-ए-महफ़िल थी परवाने की ख़ाक
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मिलने वाले से राह पैदा कर
उस से मिलने की और सूरत क्या
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मेरी आँखें और दीदार आप का
या क़यामत आ गई या ख़्वाब है
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टैग : दीदार
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किस को देखा उन की सूरत देख कर
जी में आता है कि सज्दा कीजिए
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तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो
हसीनों से तर्क-ए-वफ़ा चाहता हूँ
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वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
अभी कुछ दिनों हम को जीना पड़ेगा
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टैग : वादा
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