अमीर क़ज़लबाश के शेर
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी
-
टैग : ख़ामोशी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
यकुम जनवरी है नया साल है
दिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है
-
टैग : नया साल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसाँ था
मुझ से हर वक़्त मुख़ातिब रही ग़ैरत मेरी
-
टैग : ख़ुद्दारी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हर क़दम पे नाकामी हर क़दम पे महरूमी
ग़ालिबन कोई दुश्मन दोस्तों में शामिल है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
तुम राह में चुप-चाप खड़े हो तो गए हो
किस किस को बताओगे कि घर क्यूँ नहीं जाते
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
सुना है अब भी मिरे हाथ की लकीरों में
नजूमियों को मुक़द्दर दिखाई देता है
-
टैग : क़िस्मत
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मिरे पड़ोस में ऐसे भी लोग बसते हैं
जो मुझ में ढूँड रहे हैं बुराइयाँ अपनी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
तुझ से इक उम्र की हालाँकि शनासाई है
-
टैग : ज़िंदगी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी
मेरे सोगवारों में आज मेरा क़ातिल है
-
टैग : क़ातिल
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मैं क्या जानूँ घरों का हाल क्या है
मैं सारी ज़िंदगी बाहर रहा हूँ
-
टैग : हिजरत
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
ख़ुदा जाने मैं किस से डर रहा हूँ
-
टैग : तन्हाई
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मैं ने क्यूँ तर्क-ए-तअल्लुक़ की जसारत की है
तुम अगर ग़ौर करोगे तो पशीमाँ होगे
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
पूछा है ग़ैर से मिरे हाल-ए-तबाह को
इज़हार-ए-दोस्ती भी किया दुश्मनी के साथ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
क्या किसी सफ़ीने को आरज़ू-ए-साहिल है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
होना पड़ा है ख़ूगर-ए-ग़म भी ख़ुशी की ख़ैर
वो मुझ पे मेहरबाँ हैं मगर बे-रुख़ी के साथ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जहाँ जहाँ भी है नहर-ए-फ़ुरात का इम्काँ
वहीं यज़ीद का लश्कर दिखाई देता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जश्न-ए-बहार-ए-नौ है नशेमन की ख़ैर हो
उट्ठा है क्यूँ चमन में धुआँ रौशनी के साथ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अदा हुआ है जो इक लफ़्ज़ बे-असास न हो
मिरा ख़ुदा कहीं मेरी तरह उदास न हो
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
सुकूत-ए-शब में दर-ए-दिल पे एक दस्तक थी
बिखर गई तिरी यादों की कहकशाँ मुझ से
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मेरे उस के दरमियाँ हाइल कई कोहसार हैं
मुझ तक आते-आते बादल तिश्ना-लब हो जाएगा
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
कहीं सलीब कहीं कर्बला नज़र आए
जिधर निगाह उठे ज़ख़्म सा नज़र आए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया