बाक़ी सिद्दीक़ी के शेर
दोस्ती ख़ून-ए-जिगर चाहती है
काम मुश्किल है तो रस्ता देखो
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यही रस्ता है अब यही मंज़िल
अब यहीं दिल किसी बहाने लगे
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तुम भी उल्टी उल्टी बातें पूछते हो
हम भी कैसी कैसी क़समें खाते हैं
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तुझ को देखा तिरे वादे देखे
ऊँची दीवार के लम्बे साए
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टैग : वादा
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यूँ भी होने का पता देते हैं
अपनी ज़ंजीर हिला देते हैं
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किस से पूछें कि वो अंदाज़-ए-नज़र
कब तबस्सुम हुआ कब तीर हुआ
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टैग : तीर
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हर याद हर ख़याल है लफ़्ज़ों का सिलसिला
ये महफ़िल-ए-नवा है यहाँ बोलते रहो
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राज़-ए-सर-बस्ता है महफ़िल तेरी
जो समझ लेगा वो तन्हा होगा
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आप को कारवाँ से क्या मतलब
आप तो मीर-ए-कारवाँ ठहरे
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कश्तियाँ टूट गई हैं सारी
अब लिए फिरता है दरिया हम को
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टैग : बेकसी
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उन का या अपना तमाशा देखो
जो दिखाता है ज़माना देखो
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दिल को आने लगा बसने का ख़याल
आग जब घर को लगा दी हम ने
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एक दीवार उठाने के लिए
एक दीवार गिरा देते हैं
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दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं
कोई दुश्मन भी तिरा है कि नहीं
दुनिया ने हर बात में क्या क्या रंग भरे
हम सादा औराक़ उलटते जाते हैं
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रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
तेरे जल्वों का असर याद आया
आए न फिर नज़र कहीं जाने किधर गए
उन तक तो साथ गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर गई
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'बाक़ी' जो चुप रहोगे तो उट्ठेंगी उँगलियाँ
है बोलना भी रस्म-ए-जहाँ बोलते रहो
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टैग : ख़ामोशी
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ख़ुद-फ़रेबी सी ख़ुद-फ़रेबी है
पास के ढोल भी सुहाने लगे
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एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
बैठने में जहाँ ज़माने लगे
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दिल में जब बात नहीं रह सकती
किसी पत्थर को सुना देते हैं
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पहले हर बात पे हम सोचते थे
अब फ़क़त हाथ उठा देते हैं
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हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
और तन्हाई में दोहराते हैं हम
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एक हँसती हुई बदली देखी
एक जलता हुआ घर याद आया
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वक़्त के पास हैं कुछ तस्वीरें
कोई डूबा है कि उभरा देखो
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तुम ज़माने की राह से आए
वर्ना सीधा था रास्ता दिल का
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दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं
कोई दुश्मन भी तिरा है कि नहीं
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वक़्त का पत्थर भारी होता जाता है
हम मिट्टी की सूरत देते जाते हैं
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टैग : वक़्त
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और जा जा के अर्ज़-ए-हाल करो
लो सलाम-ओ-पयाम से भी गए
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बंद कलियों की अदा कहती है
बात करने के हैं सौ पैराए
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हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
तू ने किस रंग में देखा हम को
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कान पड़ती नहीं आवाज़ कोई
दिल में वो शोर बपा है अपना
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तेरे ग़म से तो सुकून मिलता है
अपने शोलों ने जलाया हम को
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ज़िंदगी की बिसात पर 'बाक़ी'
मौत की एक चाल हैं हम लोग
इस बदलते हुए ज़माने में
तेरे क़िस्से भी कुछ पुराने लगे
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तेरी हर बात पे चुप रहते हैं
हम सा पत्थर भी कोई क्या होगा
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हो गए चुप हमें पागल कह कर
जब किसी ने भी न समझा हम को
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कुछ न पा कर भी मुतमइन हैं हम
इश्क़ में हाथ क्या ख़ज़ाने लगे
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रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे
बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गया हूँ
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हर नए हादसे पे हैरानी
पहले होती थी अब नहीं होती
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