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अख़्तर शीरानी के शेर
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते
ग़म-ए-आक़िबत है न फ़िक्र-ए-ज़माना
पिए जा रहे हैं जिए जा रहे हैं
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बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले
हिसाब होता रहेगा या रब हमें मँगा दे शराब पहले
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टैग : शराब
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याद आओ मुझे लिल्लाह न तुम याद करो
मेरी और अपनी जवानी को न बर्बाद करो
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पारसाई की जवाँ-मर्गी न पूछ
तौबा करनी थी कि बदली छा गई
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उन को उल्फ़त ही सही अग़्यार से
हम से क्यों अग़्यार की बातें करें
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मुझे दोनों जहाँ में एक वो मिल जाएँ गर 'अख़्तर'
तो अपनी हसरतों को बे-नियाज़-ए-दो-जहाँ कर लूँ
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उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले
गुनगुनाते हुए इक शोख़ का अफ़्साना चले
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टैग : कोलकाता
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अब जी में है कि उन को भुला कर ही देख लें
वो बार बार याद जो आएँ तो क्या करें
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टैग : याद
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जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है
बंदे के दिल में क्या है अल्लाह जानता है
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भुला बैठे हो हम को आज लेकिन ये समझ लेना
बहुत पछताओगे जिस वक़्त हम कल याद आएँगे
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टैग : याद
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कुछ इस तरह से याद आते रहे हो
कि अब भूल जाने को जी चाहता है
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टैग : याद
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मोहब्बत के इक़रार से शर्म कब तक
कभी सामना हो तो मजबूर कर दूँ
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टैग : शर्म
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उस के अहद-ए-शबाब में जीना
जीने वालो तुम्हें हुआ क्या है
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मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर
आज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई
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टैग : ख़त
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इश्क़ को नग़्मा-ए-उम्मीद सुना दे आ कर
दिल की सोई हुई क़िस्मत को जगा दे आ कर
मुख़्तसर सोहबत है साक़ी जल्द जल्द
जाम उठे मीना बढ़े साग़र चले
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ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें
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उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
किस दर्जा ना-उमीद हैं परवरदिगार से
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तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ
ये शर्मीली नज़र कह दे तो कुछ गुस्ताख़ियाँ कर लूँ
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कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
अपनी क़िस्मत में जो लिक्खी थी वो ख़्वारी न गई
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माना कि सब के सामने मिलने से है हिजाब
लेकिन वो ख़्वाब में भी न आएँ तो क्या करें
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टैग : ख़्वाब
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ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी
देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या
लॉन्ड्री खोली थी उस के इश्क़ में
पर वो कपड़े हम से धुलवाता नहीं
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टैग : मिज़ाह
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वो अगर आ न सके मौत ही आई होती
हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता
किस को फ़ुर्सत थी ज़माने के सितम सहने की
गर न उस शोख़ की आँखों का इशारा होता
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इस तरह रेल के हमराह रवाँ है बादल
साथ जैसे कोई उड़ता हुआ मय-ख़ाना चले
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मुद्दतें हो गईं बिछड़े हुए तुम से लेकिन
आज तक दिल से मिरे याद तुम्हारी न गई
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टैग : याद
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पलट सी गई है ज़माने की काया
नया साल आया नया साल आया
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टैग : नया साल
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इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ
वो वफ़ाएँ करने वाले बेवफ़ा क्यूँ हो गए
किया है आने का वादा तो उस ने
मेरे परवरदिगार आए न आए
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टैग : वादा
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कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता
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टैग : तन्हाई
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दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी
'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए
दिल में लेता है चुटकियाँ कोई
हाए इस दर्द की दवा क्या है
इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
इक हम कि हैं अभी से पशीमान-ए-आरज़ू!
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टैग : आरज़ू
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किसी मग़रूर के आगे हमारा सर नहीं झुकता
फ़क़ीरी में भी 'अख़्तर' ग़ैरत-ए-शाहाना रखते हैं
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तू वाइ'ज़ों की न सुन मय-कशों की ख़िदमत कर
गुनह सवाब की ख़ातिर सवाब है साक़ी
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चमन वालों से मुझ सहरा-नशीं की बूद-ओ-बाश अच्छी
बहार आ कर चली जाती है वीरानी नहीं जाती
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मुबारक मुबारक नया साल आया
ख़ुशी का समाँ सारी दुनिया पे छाया
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टैग : नया साल
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इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
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ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
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ज़िंदगी कितनी मसर्रत से गुज़रती या रब
ऐश की तरह अगर ग़म भी गवारा होता
तू वाइ'ज़ों की न सुन मय-कशों की ख़िदमत कर
गुनह सवाब की ख़ातिर सवाब है साक़ी
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रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा
एक नक़्शा सामने आता रहा जाता रहा
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यहाँ क्या देखते हो नासेहो घर में धरा क्या है
मिरे दिल के किसी पर्दे में ढूँडो यादगार उस की
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है क़यामत तिरे शबाब का रंग
रंग बदलेगा फिर ज़माने का
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टैग : जवानी
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काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
इक दिन की बात हो तो उसे भूल जाएँ हम
नाज़िल हों दिल पे रोज़ बलाएँ तो क्या करें
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