जलील मानिकपूरी के शेर
अभी कुछ देर है सय्याद बहार आने में
और दो रोज़ क़फ़स से मुझे आज़ाद न कर
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अब्र में बादा-परस्तों का जो होता है हुजूम
मोहतसिब आ के बरसता है घटा से पहले
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सूरत तो इब्तिदा से तिरी ला-जवाब थी
नाज़-ओ-अदा ने और तरह-दार कर दिया
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टैग : हुस्न
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आँखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यार
कब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
जुज़ बे-ख़ुदी गुज़र नहीं कू-ए-हबीब में
गुम हो गया जो मैं तो मिला रास्ता मुझे
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टैग : बेख़ुदी
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दिल में आए थे सैर करने को
रह पड़े वो समझ के घर अपना
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फ़स्ल-ए-गुल आई जुनूँ उछला 'जलील'
अब तबीअ'त क्या सँभाली जाएगी
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तज़्किरा सोज़-ए-मोहब्बत का किया था इक बार
ता-दम-ए-मर्ग ज़बाँ से मिरी छाले न गए
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क़यामत का मुझे डर क्या जो कल आनी है आज आए
तुम्हारे साथ की खेली है मेरी देखी-भाली है
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नायाब आम लुत्फ़ हुए रंग रंग के
कोई है ज़र्द कोई हरा कुछ हैं लाल लाल
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टैग : आम
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गरचे तर्क-ए-आश्नाई को ज़माना हो गया
लेकिन अब तक चौंक उठते हैं वो मेरे नाम से
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सौ तह से नुमूदार हो उभरा हुआ जौबन
ये दिल नहीं जिस को कोई आँचल में छुपा ले
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उन की सूरत देख ली ख़ुश हो गए
उन की सीरत से हमें क्या काम है
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टैग : सूरत शायरी
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उल्टी इक हाथ से नक़ाब उन की
एक से अपने दिल को थाम लिया
तन्हा वो आएँ जाएँ ये है शान के ख़िलाफ़
आना हया के साथ है जाना अदा के साथ
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सच कहा ज़ाहिद ये तू ने ज़हर-ए-क़ातिल है शराब
हम भी कहते थे यही जब तक बहार आई न थी
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जान ले लेना जलाना खेल है माशूक़ का
आँख से मारा लब-ए-नाज़ुक से ज़िंदा कर दिया
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मिला न लुत्फ़-ए-विसाल लेकिन मज़े का शब भर रहा तमाशा
इधर खुला बंद उस क़बा का गिरह लगा दी उधर हया ने
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टैग : विसाल
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न इशारा न किनाया न तबस्सुम न कलाम
पास बैठे हैं मगर दूर नज़र आते हैं
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अपने माथे की शिकन तुम से मिटाई न गई
अपनी तक़दीर के बल हम से निकाले न गए
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टैग : क़िस्मत
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किस शान से चला है मिरा शहसवार-ए-हुस्न
फ़ित्ने पुकारते हैं ज़रा हट के राह से
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वस्ल की रात ख़ुशी ने मुझे सोने न दिया
मैं भी बेदार रहा ताले-ए-बेदार के साथ
यूँ तो जल बुझने में दोनों हैं बराबर लेकिन
वो कहाँ शम्अ में जो आग है परवाने में
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जब से छूटा है गुलिस्ताँ हम से
रोज़ सुनते हैं बहार आई है
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टैग : बहार
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न वो आएँ कि राहत हो न मौत आए कि फ़ुर्सत हो
पड़ा है दिल कशाकश में न ग़म निकले न दम निकले
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इन हसीनों से ख़ुदा साबिक़ा डाले न कभी
सब को बर्बाद किया दिल में रहे जिस जिस के
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हम क्या करें सवाल ये सोचा नहीं अभी
वो क्या जवाब देंगे ये धड़का अभी से है
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टैग : सवाल
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ग़ुरूर से जो ज़मीं पर क़दम नहीं रखती
ये किस गली से नसीम-ए-बहार आती है
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टैग : बहार
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ख़ार हैं हम जो नज़र में तो चले जाते हैं
बाग़बाँ तुझ को मुबारक रहे गुलशन तेरा
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मीज़ाँ खड़ी हुई मिरे आगे न रोज़-ए-हश्र
दबना पड़ा उसे मिरे बार-ए-गुनाह से
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मुँह तिरा देखे जो सोते जागते
सुब्ह उस की है उसी की शाम है
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बात करते वो क़त्ल करता है
बात भी जिस से की नहीं जाती
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बहार आई कि दिन होली के आए
गुलों में रंग खेला जा रहा है
तमाशा है मिरी रिंदी कि साग़र हाथ में ले कर
हर इक से पूछता हूँ मैं कहीं थोड़ी सी मस्ती है
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बरसों हुए न तुम ने किया भूल कर भी याद
वादे की तरह हम भी फ़रामोश हो गए
ओ आँख चुरा के जाने वाले
हम भी थे कभी तिरी नज़र में
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टैग : तग़ाफ़ुल
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सहरा की अब हवा जो लगी हो गया हिरन
मजनूँ के बस का नाक़ा-ए-लैला नहीं रहा
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तुझ को शिकवा है कि उश्शाक़ ने बदनाम किया
सच तो ये है कि तिरा हुस्न है दुश्मन तेरा
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टैग : हुस्न
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जो तिरे इश्क़ में तबाह हुआ
कोई उस को तबाह कर न सका
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टैग : इश्क़
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ज़ब्त-ए-नाला से आज काम लिया
गिरती बिजली को मैं ने थाम लिया
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टैग : बिजली
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ज़मीन-ए-शेर हम करते हैं आबाद
चले आते हैं मज़मूँ आसमाँ से
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दोनों ज़ालिम हैं फ़र्क़ इतना है
आसमाँ पीर है जवाँ तू है
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हैरान हूँ कि पीर-ए-मुग़ाँ के लिबास में
आए कहाँ से जामा-ए-एहराम के ख़वास
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जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो ज़मीन चले आसमाँ चले
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सख़्त नाज़ुक मिज़ाज-ए-दिलबर था
ख़ैर गुज़री कि दिल भी पत्थर था
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सच पूछिए तो नाला-ए-बुलबुल है बे-ख़ता
फूलों में सारी आग लगाई सबा की है
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बुत कह दिया जो मैं ने तो अब बोलते नहीं
इतनी सी बात का तुम्हें इतना ख़याल है
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टपकना अश्क का तम्हीद है दीदार की जैसे
तुलू-ए-महर से पहले सितारा सुब्ह-दम निकले
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क्या जाने शैख़ क़द्र हमारी शराब की
हर घूँट में पड़ी हुई रहमत ख़ुदा की है
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उन से इज़हार-ए-मोहब्बत जो कोई करता है
दूर से उस को दिखा देते हैं तुर्बत मेरी
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