Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Anwar Shuoor's Photo'

अग्रणी पाकिस्तानी शायरों में से एक, एक अख़बार में रोज़ाना सामयिक विषयों पर 'क़िता' लिखते हैं।

अग्रणी पाकिस्तानी शायरों में से एक, एक अख़बार में रोज़ाना सामयिक विषयों पर 'क़िता' लिखते हैं।

अनवर शऊर के शेर

43.7K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ

अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ

फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था

वो मुझ से इंतिहाई ख़ुश ख़फ़ा होने से पहले था

इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह

ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह

बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है

हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है

सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं

ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह

इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़

ये मोहब्बत है कोई शादी नहीं

जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती

तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती

मोहब्बत रही चार दिन ज़िंदगी में

रहा चार दिन का असर ज़िंदगी भर

कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं

इख़्तियार अपनी जगह है बेबसी अपनी जगह

काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए

तशरीफ़ लाइएगा मुलाक़ात के लिए

किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ

क्या बताऊँ किस क़दर तन्हा हूँ मैं

मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट

नज़र आते हैं मुस्कुराए हुए

मेरे घर के तमाम दरवाज़े

तुम से करते हैं प्यार जाओ

लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो

नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए

ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ

हसरतों में शुमार होता है

मुस्कुरा कर देख लेते हो मुझे

इस तरह क्या हक़ अदा हो जाएगा

हमेशा हाथों में होते हैं फूल उन के लिए

किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं

था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को

मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया

'शुऊर' सिर्फ़ इरादे से कुछ नहीं होता

अमल है शर्त इरादे सभी के होते हैं

इश्क़ तो हर शख़्स करता है 'शुऊर'

तुम ने अपना हाल ये क्या कर लिया

सभी ज़िंदगी के मज़े लूटते हैं

आया हमें ये हुनर ज़िंदगी भर

किसी ग़रीब को ज़ख़्मी करें कि क़त्ल करें

निगाह-ए-नाज़ पे जुर्माने थोड़ी होते हैं

किया बादलों में सफ़र ज़िंदगी भर

ज़मीं पर बनाया घर ज़िंदगी भर

हैं पत्थरों की ज़द पे तुम्हारी गली में हम

क्या आए थे यहाँ इसी बरसात के लिए

लोग सदमों से मर नहीं जाते

सामने की मिसाल है मेरी

कभी रोता था उस को याद कर के

अब अक्सर बे-सबब रोने लगा हूँ

अच्छों को तो सब ही चाहते हैं

है कोई कि मैं बहुत बुरा हूँ

हो गए दिन जिन्हें भुलाए हुए

आज कल हैं वो याद आए हुए

आदमी के लिए रोना है बड़ी बात 'शुऊर'

हँस तो सकते हैं सब इंसान हँसी में क्या है

दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'

दोस्ती अपनी जगह है शाएरी अपनी जगह

ज़माने के झमेलों से मुझे क्या

मिरी जाँ! मैं तुम्हारा आदमी हूँ

वो मुझ से रूठ जाती तो और क्या करती

मिरी ख़ताएँ मिरी लग़्ज़िशें ही ऐसी थीं

चले आया करो मेरी तरफ़ भी!

मोहब्बत करने वाला आदमी हूँ

सामने कर वो क्या रहने लगा

घर का दरवाज़ा खुला रहने लगा

'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं

ये सादगी है तो वल्लाह इंतिहा की है

बहुत इरादा किया कोई काम करने का

मगर अमल हुआ उलझनें ही ऐसी थीं

सच है उम्र भर किस का कौन साथ देता है

ग़म भी हो गया रुख़्सत दिल को छोड़ कर तन्हा

हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे

ख़्वाब में ये करामात होती रही

मरने वाला ख़ुद रूठा था

या नाराज़ हयात हुई थी

गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा

लौट कर देखूँगा चल पड़ा अगर तन्हा

गो मुझे एहसास-ए-तन्हाई रहा शिद्दत के साथ

काट दी आधी सदी एक अजनबी औरत के साथ

'शुऊर' तुम ने ख़ुदा जाने क्या किया होगा

ज़रा सी बात के अफ़्साने थोड़ी होते हैं

रहे तज़्किरे अम्न के आश्ती के

मगर बस्तियों पर बरसते रहे बम

मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक

मुझे हवा से बचाए रखो सवेरे तक

बहरूप नहीं भरा है मैं ने

जैसा भी हूँ सामने खड़ा हूँ

निज़ाम-ए-ज़र में किसी और काम का क्या हो

बस आदमी है कमाने का और खाने का

तेरी आस पे जीता था मैं वो भी ख़त्म हुई

अब दुनिया में कौन है मेरा कोई नहीं मेरा

वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद

कभी फिर नए कपड़े पहन के निकला मैं

कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए

दिगर-गूँ हैं मिरे हालात जब से तुम नहीं आए

तिरे होते जो जचती ही नहीं थी

वो सूरत आज ख़ासी लग रही है

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए