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अल्लामा इक़बाल

1877 - 1938 | लाहौर, पाकिस्तान

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

महान उर्दू शायर, पाकिस्तान के राष्ट्र-कवि जिन्होंने 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसे गीतों की रचना की

अल्लामा इक़बाल की टॉप 20 शायरी

तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया

मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है

पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी

उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी

तू अगर मेरा नहीं बनता बन अपना तो बन

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले

ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ

कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर

उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं

कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल बन जाए

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल

लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा

तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है

मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम

जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें

अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं

ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं

पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की

नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

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