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बशीर बद्र के शेर
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
गुलाबों की तरह शबनम में अपना दिल भिगोतें हैं
मोहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं
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टैग : मोहब्बत
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सोचा नहीं अच्छा-बुरा देखा-सुना कुछ भी नहीं
माँगा ख़ुदा से रात-दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
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वो अब वहाँ है जहाँ रास्ते नहीं जाते
मैं जिस के साथ यहाँ पिछले साल आया था
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टैग : श्रद्धांजलि
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वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
किसी से वक़्त तो पूछें कि क्या बजा होगा
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टैग : इंतिज़ार
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तुम अभी शहर में क्या नए आए हो
रुक गए राह में हादसा देख कर
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ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए
जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है
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दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है
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हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
तुझे लिक्खूँ तो मेरी उँगलियाँ ऐसी धड़कती हैं
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कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
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मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
वो जो एक रात को आसमाँ का निज़ाम दे मिरे हाथ में
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मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इस लिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी करना
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
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हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है
हम को क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है
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इक 'मीर' था सो आज भी काग़ज़ में क़ैद है
हिन्दी ग़ज़ल का दूसरा अवतार मैं ही हूँ
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टैग : मीर तक़ी मीर
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गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
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जिस को देखो मिरे माथे की तरफ़ देखता है
दर्द होता है कहाँ और कहाँ रौशन है
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एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं
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इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
मुझे दुनिया से नफ़रत हो गई है
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मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूँ
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टैग : दुश्मन
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सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत
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मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यूँ मेरे लिए बदनाम हो जाए
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हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है
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तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें
शायद मेरे दिल की धड़कन चुनी है इन दीवारों में
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टैग : दिल
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वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
बचपन से ग़ज़ल ही मेरी महबूबा रही है
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तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
हमारे हाथ में कोई लकीर ऐसी थी
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लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे
जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ
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न तुम होश में हो न हम होश में हैं
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी
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चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर
छत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो
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टैग : महबूब
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ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
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तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई
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वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियाँ
उन्हीं का हाथ हम ने छू के देखा कितना सर्द है
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टैग : मौत
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हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में
जो ज़िंदगी को जीत ले वो ज़िंदगी का मर्द है
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टैग : ज़िंदगी
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घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
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टैग : फ़ासला
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मैं चुप रहा तो और ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ीं
वो भी सुना है उस ने जो मैं ने कहा नहीं
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मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
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मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
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टैग : शाम
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