आहट पर शेर
प्रेम में हिज्र-ओ-विसाल
(विरह और मिलन) के गीत सदियों से गाए जाते हैं । उर्दू शायरी में प्रेम के इस संदर्भ को आहट जैसे लफ़्ज़ के माध्यम से बड़ी ख़ूब-सूरती के साथ पेश किया गया है । असल में इस लफ़्ज़ के इर्द-गिर्द महबूब के आने का धोका, उम्मीद और इसी तरह के दूसरे तजरबे को उर्दू शायरी बयान करती आई है। प्रेम के इस तजरबे की व्याख्या में आहट को उर्दू शायरी ने और किस-किस तरह से पेश किया है उसकी एक झलक आपको यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में मिलेगी ।
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
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कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो
मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए
'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
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आहटें सुन रहा हूँ यादों की
आज भी अपने इंतिज़ार में गुम
आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है
नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए
कोई आवाज़ न आहट न कोई हलचल है
ऐसी ख़ामोशी से गुज़रे तो गुज़र जाएँगे
कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई
इस अँधेरे में न इक गाम भी रुकना यारो
अब तो इक दूसरे की आहटें काम आएँगी
पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया
फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
बार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए
शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं
सूरज डूब के मेरे घर में निकला था
अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं
किस की दुनिया में आ गया हूँ मैं
ये ज़ुल्फ़-बर-दोश कौन आया ये किस की आहट से गुल खिले हैं
महक रही है फ़ज़ा-ए-हस्ती तमाम आलम बहार सा है
आहट भी अगर की तो तह-ए-ज़ात नहीं की
लफ़्ज़ों ने कई दिन से कोई बात नहीं की
ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग
आहट हुई तो चाँद दरीचे में आ गया
किसी आहट में आहट के सिवा कुछ भी नहीं अब
किसी सूरत में सूरत के सिवा क्या रह गया है
हर लहज़ा उस के पाँव की आहट पे कान रख
दरवाज़े तक जो आया है अंदर भी आएगा
पलट न जाएँ हमेशा को तेरे आँगन से
गुदाज़ लम्हों की बे-ख़्वाब आहटों से न रूठ
दिल के सूने सेहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
धूप-भरे सन्नाटे में आवाज़ सुनी है छाँव की