Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

दुश्मन पर शेर

हम आम तौर पर दुश्मन

से दुश्मनी के जज़्बे से ही वाबस्ता होते हैं लेकिन शायरी में बात इस से बहुत आगे की है। एक तख़्लीक़-कार दुश्मन और दुश्मनी को किस तौर पर जीता है, उस का दुश्मन उस के लिए किस क़िस्म के दुख और किस क़िस्म की सहूलतें पैदा करता है इस का एक दिल-चस्प बयान हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब है। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़िए और अपने दुश्मनों से अपने रिश्तों पर अज़-सर-ए-नौ ग़ौर कीजिए।

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं

दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

हफ़ीज़ बनारसी

कू-ए-जानाँ में ग़ैरों की रसाई हो जाए

अपनी जागीर ये या-रब पराई हो जाए

लाला माधव राम जौहर

गया 'जौहर' अजब उल्टा ज़माना क्या कहें

दोस्त वो करते हैं बातें जो अदू करते नहीं

लाला माधव राम जौहर

अजब हरीफ़ था मेरे ही साथ डूब गया

मिरे सफ़ीने को ग़र्क़ाब देखने के लिए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ

सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तरफ़

अर्श मलसियानी

ख़ुदा के वास्ते मौक़ा दे शिकायत का

कि दोस्ती की तरह दुश्मनी निभाया कर

साक़ी फ़ारुक़ी

जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ

दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो

लाला माधव राम जौहर

ये दिल लगाने में मैं ने मज़ा उठाया है

मिला दोस्त तो दुश्मन से इत्तिहाद किया

हैदर अली आतिश

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा

दोस्तों को आज़माते जाइए

ख़ुमार बाराबंकवी

दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर

दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा

हैदर अली आतिश

दिन एक सितम एक सितम रात करो हो

वो दोस्त हो दुश्मन को भी तुम मात करो हो

कलीम आजिज़

दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं

कोई दुश्मन भी तिरा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर'

कि उन के शर से क्या क्या ख़ैर के पहलू निकलते हैं

अनवर मसूद

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है

दोस्तों ने भी क्या कमी की है

हबीब जालिब

आज खुला दुश्मन के पीछे दुश्मन थे

और वो लश्कर इस लश्कर की ओट में था

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तरतीब दे रहा था मैं फ़हरिस्त-ए-दुश्मनान

यारों ने इतनी बात पे ख़ंजर उठा लिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

दुश्मन मुझ पर ग़ालिब भी सकता है

हार मिरी मजबूरी भी हो सकती है

बेदिल हैदरी

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो

मिर्ज़ा ग़ालिब

दोस्त तुझ को रहम आए तो क्या करूँ

दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है

लाला माधव राम जौहर

दुश्मन से ऐसे कौन भला जीत पाएगा

जो दोस्ती के भेस में छुप कर दग़ा करे

सलीम सिद्दीक़ी

दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है

दोस्तों का ख़ुलूस आज़माने के बाद

ख़ुमार बाराबंकवी

दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं

देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन

परवीन शाकिर

मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है

मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूँ

बशीर बद्र

हुस्न आईना फ़ाश करता है

ऐसे दुश्मन को संगसार करो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मैं कर दुश्मनों में बस गया हूँ

यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे

राहत इंदौरी

दोस्ती जब किसी से की जाए

दुश्मनों की भी राय ली जाए

राहत इंदौरी

मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है

मैं तन्हा आदमी की दोस्ती हूँ

बाक़र मेहदी

मेरे दुश्मन मुझ को भूल सके

वर्ना रखता है कौन किस को याद

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

दोस्तों और दुश्मनों में किस तरह तफ़रीक़ हो

दोस्तों और दुश्मनों की बे-रुख़ी है एक सी

जान काश्मीरी

सच कहते हैं कि नाम मोहब्बत का है बड़ा

उल्फ़त जता के दोस्त को दुश्मन बना लिया

जोश लखनवी

उस के होने से हुई है अपने होने की ख़बर

कोई दुश्मन से ज़ियादा लाएक़-ए-इज़्ज़त नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दोस्ती की तुम ने दुश्मन से अजब तुम दोस्त हो

मैं तुम्हारी दोस्ती में मेहरबाँ मारा गया

इम्दाद इमाम असर

मिरे हरीफ़ मिरी यक्का-ताज़ियों पे निसार

तमाम उम्र हलीफ़ों से जंग की मैं ने

जौन एलिया

कुछ समझ कर उस मह-ए-ख़ूबी से की थी दोस्ती

ये समझे थे कि दुश्मन आसमाँ हो जाएगा

इम्दाद इमाम असर

दुनिया में हम रहे तो कई दिन इस तरह

दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे

क़ाएम चाँदपुरी

मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं

ज़िंदगी भी जान ले कर जाएगी

अर्श मलसियानी

बहारों की नज़र में फूल और काँटे बराबर हैं

मोहब्बत क्या करेंगे दोस्त दुश्मन देखने वाले

कलीम आजिज़

उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा

वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

निदा फ़ाज़ली

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए