बेचैनी शायरी
दुनिया बेचैनियों के ज़ह्र से बनी है शायद ही कोई शख़्स ऐसा मिले जिस ने इसका कड़वा ज़ह्र न चखा हो। लेकिन इस बेचैनी या तड़प के पीछे किसी महबूब का तसव्वुर हो तो बेचैनी से भी मोहब्बत हो जाना लाज़िमी है। अगर ये बेचैनी शायर के हिस्से में आ जाए तो क्या कहने। दिल की गहराइयों में उतरने वाले ऐसे ऐसे आशआर आने लगते हैं जिनकी कसक हमेशा याद रहती है, ऐसी होती है बेचैनी शायरीः
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
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न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में
भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे
तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं