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TOP 20 SHAYARI of Mirza Ghalib
ham ko ma.alūm hai jannat kī haqīqat lekin
dil ke ḳhush rakhne ko 'ġhālib' ye ḳhayāl achchhā hai
hum ko malum hai jannat ki haqiqat lekin
dil ke KHush rakhne ko 'ghaalib' ye KHayal achchha hai
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mohabbat meñ nahīñ hai farq jiine aur marne kā
usī ko dekh kar jiite haiñ jis kāfir pe dam nikle
In love there is no difference 'tween life and death do know
The very one for whom I die, life too does bestow
mohabbat mein nahin hai farq jine aur marne ka
usi ko dekh kar jite hain jis kafir pe dam nikle
In love there is no difference 'tween life and death do know
The very one for whom I die, life too does bestow
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hazāroñ ḳhvāhisheñ aisī ki har ḳhvāhish pe dam nikle
bahut nikle mire armān lekin phir bhī kam nikle
I have a thousand yearnings , each one afflicts me so
Many were fulfilled for sure, not enough although
hazaron KHwahishen aisi ki har KHwahish pe dam nikle
bahut nikle mere arman lekin phir bhi kam nikle
I have a thousand yearnings , each one afflicts me so
Many were fulfilled for sure, not enough although
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un ke dekhe se jo aa jaatī hai muñh par raunaq
vo samajhte haiñ ki bīmār kā haal achchhā hai
un ke dekhe se jo aa jati hai munh par raunaq
wo samajhte hain ki bimar ka haal achchha hai
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Tag : Zarb-ul-masal
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ye na thī hamārī qismat ki visāl-e-yār hotā
agar aur jiite rahte yahī intizār hotā
That my love be consummated, fate did not ordain
Living longer had I waited, would have been in vain
ye na thi hamari qismat ki visal-e-yar hota
agar aur jite rahte yahi intizar hota
That my love be consummated, fate did not ordain
Living longer had I waited, would have been in vain
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ragoñ meñ dauḌte phirne ke ham nahīñ qaa.il
jab aañkh hī se na Tapkā to phir lahū kyā hai
merely because it courses through the veins, I'm not convinced
if it drips not from one's eyes blood cannot be held true
ragon mein dauDte phirne ke hum nahin qail
jab aankh hi se na Tapka to phir lahu kya hai
merely because it courses through the veins, I'm not convinced
if it drips not from one's eyes blood cannot be held true
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ishrat-e-qatra hai dariyā meñ fanā ho jaanā
dard kā had se guzarnā hai davā ho jaanā
ishrat-e-qatra hai dariya mein fana ho jaana
dard ka had se guzarna hai dawa ho jaana
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na thā kuchh to ḳhudā thā kuchh na hotā to ḳhudā hotā
Duboyā mujh ko hone ne na hotā maiñ to kyā hotā
In nothingness God was there, if naught he would persist
Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist
EXPLANATION
यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी न होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति न जाने क्या होती।
इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।
हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।
इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी न होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला व तन्हा मौजूद रहेगा।
इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद न रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।
Shafaq Sopori
na tha kuchh to KHuda tha kuchh na hota to KHuda hota
Duboya mujh ko hone ne na hota main to kya hota
In nothingness God was there, if naught he would persist
Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist
EXPLANATION
यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी न होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति न जाने क्या होती।
इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।
हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।
इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी न होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला व तन्हा मौजूद रहेगा।
इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद न रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।
Shafaq Sopori
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rañj se ḳhūgar huā insāñ to miT jaatā hai rañj
mushkileñ mujh par paḌīñ itnī ki āsāñ ho ga.iiñ
ranj se KHugar hua insan to miT jata hai ranj
mushkilen mujh par paDin itni ki aasan ho gain
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Tag : Motivational
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reḳhte ke tumhīñ ustād nahīñ ho 'ġhālib'
kahte haiñ agle zamāne meñ koī 'mīr' bhī thā
reKHte ke tumhin ustad nahin ho 'ghaalib'
kahte hain agle zamane mein koi 'mir' bhi tha
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aah ko chāhiye ik umr asar hote tak
kaun jiitā hai tirī zulf ke sar hote tak
A prayer needs a lifetime, an answer to obtain
who can live until the time that you decide to deign
aah ko chahiye ek umr asar hote tak
kaun jita hai teri zulf ke sar hote tak
A prayer needs a lifetime, an answer to obtain
who can live until the time that you decide to deign
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haiñ aur bhī duniyā meñ suḳhan-var bahut achchhe
kahte haiñ ki 'ġhālib' kā hai andāz-e-bayāñ aur
hain aur bhi duniya mein suKHan-war bahut achchhe
kahte hain ki 'ghaalib' ka hai andaz-e-bayan aur
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Tag : Self-Praise
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bas-ki dushvār hai har kaam kā āsāñ honā
aadmī ko bhī muyassar nahīñ insāñ honā
Tis difficult that every goal be easily complete
For a man, too, to be human, is no easy feat
bas-ki dushwar hai har kaam ka aasan hona
aadmi ko bhi muyassar nahin insan hona
Tis difficult that every goal be easily complete
For a man, too, to be human, is no easy feat
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Tag : Insaan
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bāzīcha-e-atfāl hai duniyā mire aage
hotā hai shab-o-roz tamāshā mire aage
just like a child's playground this world appears to me
every single night and day, this spectacle I see
bazicha-e-atfal hai duniya mere aage
hota hai shab-o-roz tamasha mere aage
just like a child's playground this world appears to me
every single night and day, this spectacle I see
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kaaba kis muñh se jāoge 'ġhālib'
sharm tum ko magar nahīñ aatī
Ghalib,what face will you to the kaabaa take
when you are not ashamed and not contrite
kaba kis munh se jaoge 'ghaalib'
sharm tum ko magar nahin aati
Ghalib,what face will you to the kaabaa take
when you are not ashamed and not contrite
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dard minnat-kash-e-davā na huā
maiñ na achchhā huā burā na huā
my pain did not seek favors from any opiate
I don't mind the fact that I did not recuperate
dard minnat-kash-e-dawa na hua
main na achchha hua bura na hua
my pain did not seek favors from any opiate
I don't mind the fact that I did not recuperate
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koī mere dil se pūchhe tire tīr-e-nīm-kash ko
ye ḳhalish kahāñ se hotī jo jigar ke paar hotā
what pain your arrow, partly drawn, inflicts upon my heart
cleanly through if it had gone, would it this sting impart?
koi mere dil se puchhe tere tir-e-nim-kash ko
ye KHalish kahan se hoti jo jigar ke par hota
what pain your arrow, partly drawn, inflicts upon my heart
cleanly through if it had gone, would it this sting impart?
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kahāñ mai-ḳhāne kā darvāza 'ġhālib' aur kahāñ vaa.iz
par itnā jānte haiñ kal vo jaatā thā ki ham nikle
Wherefrom the 'saintly' priest, and where the tavern's door
But as I entered he was leaving, this much I do know
kahan mai-KHane ka darwaza 'ghaalib' aur kahan waiz
par itna jaante hain kal wo jata tha ki hum nikle
Wherefrom the 'saintly' priest, and where the tavern's door
But as I entered he was leaving, this much I do know
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qarz kī piite the mai lekin samajhte the ki haañ
rañg lāvegī hamārī fāqa-mastī ek din
qarz ki pite the mai lekin samajhte the ki han
rang lawegi hamari faqa-masti ek din
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