aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

भरोसा पर शेर

इन्सान और इन्सान के

दर्मियान ही नहीं ख़ुदा और बंदे के बीच भी अगर कोई रिश्ता क़ायम है तो वो सिर्फ़ भरोसे की मज़बूती की वजह से है। शायर का दिल बहुत नाज़क होता है इसी लिए जब दिल टूटने की आवाज़ कहीं उसकी शायरी में सुनाई देती है तो भरोसा टूटने का मातम भी लफ़्ज़ों की गूंज में शामिल होता है। भरोसा शायरी का यह चयन आपको यक़ीनन पसंद आएगा। हमें पूरा भरोसा है इस बात परः

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है

और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

अहमद फ़राज़

मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन

मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार कर

उमर अंसारी

कोई वा'दा कोई यक़ीं कोई उमीद

मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आदतन तुम ने कर दिए वादे

आदतन हम ने ए'तिबार किया

गुलज़ार

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया

दाग़ देहलवी

आप का ए'तिबार कौन करे

रोज़ का इंतिज़ार कौन करे

दाग़ देहलवी

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना

कि ख़ुशी से मर जाते अगर ए'तिबार होता

मिर्ज़ा ग़ालिब

इश्क़ को एक उम्र चाहिए और

उम्र का कोई ए'तिबार नहीं

जिगर बरेलवी

मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं

मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना

आसिम वास्ती

मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ

मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं

जव्वाद शैख़

सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का

जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया

जोश मलीहाबादी

मुझ से बिगड़ गए तो रक़ीबों की बन गई

ग़ैरों में बट रहा है मिरा ए'तिबार आज

अहमद हुसैन माइल

या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है

या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को

शहरयार

दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था

तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था

अज़हर फ़राग़

मुझ को फ़रेब देने वाले

मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ

अतहर नफ़ीस

हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर

ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया जाए

जाँ निसार अख़्तर

मैं उस के वादे का अब भी यक़ीन करता हूँ

हज़ार बार जिसे आज़मा लिया मैं ने

मख़मूर सईदी

भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं

पहले आता था अब नहीं आता

आरज़ू लखनवी

मिरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता

किसी ने तोड़ दिया ए'तिबार टूट गया

अख़्तर नज़्मी

झूट पर उस के भरोसा कर लिया

धूप इतनी थी कि साया कर लिया

शारिक़ कैफ़ी

बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से

बहुत अज़ीज़ सही ए'तिबार कुछ भी नहीं

अख़्तर सईद ख़ान

यूँ क़ातिल को जब यक़ीं आया

हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट

फ़ानी बदायुनी

हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए

दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा दुनिया का

वहीद क़ुरैशी

किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह

लुटा के बैठोगे सब्र क़रार मेरी तरह

फ़रीद परबती

वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी

ये सच है तो उन का भरोसा नहीं है

आसी ग़ाज़ीपुरी

दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ 'रश्की'

उस को कब ए'तिबार आता है

मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की

ये और बात कि इक़रार कर सकें कभी

मिरी वफ़ा का मगर उन को ए'तिबार तो है

अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी

जब नहीं कुछ ए'तिबार-ए-ज़िंदगी

इस जहाँ का शाद क्या नाशाद क्या

इम्दाद इमाम असर

मुझे है ए'तिबार-ए-वादा लेकिन

तुम्हें ख़ुद ए'तिबार आए आए

अख़्तर शीरानी

जान तुझ पर कुछ ए'तिमाद नहीं

ज़िंदगानी का क्या भरोसा है

ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली

उस की ख़्वाहिश पे तुम को भरोसा भी है उस के होने होने का झगड़ा भी है

लुत्फ़ आया तुम्हें गुमरही ने कहा गुमरही के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल

इरफ़ान सत्तार

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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