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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Mirza Ghalib

1797 - 1869 | Delhi, India

Legendary Urdu poet occupying a place of pride in worldwide literature. One of the most quotable poets having couplets for almost all situations of life

Legendary Urdu poet occupying a place of pride in worldwide literature. One of the most quotable poets having couplets for almost all situations of life

TOP 20 SHAYARI of Mirza Ghalib

ham ko ma.alūm hai jannat haqīqat lekin

dil ke ḳhush rakhne ko 'ġhālib' ye ḳhayāl achchhā hai

hum ko malum hai jannat ki haqiqat lekin

dil ke KHush rakhne ko 'ghaalib' ye KHayal achchha hai

mohabbat meñ nahīñ hai farq jiine aur marne

usī ko dekh kar jiite haiñ jis kāfir pe dam nikle

In love there is no difference 'tween life and death do know

The very one for whom I die, life too does bestow

mohabbat mein nahin hai farq jine aur marne ka

usi ko dekh kar jite hain jis kafir pe dam nikle

In love there is no difference 'tween life and death do know

The very one for whom I die, life too does bestow

hazāroñ ḳhvāhisheñ aisī ki har ḳhvāhish pe dam nikle

bahut nikle mire armān lekin phir bhī kam nikle

I have a thousand yearnings , each one afflicts me so

Many were fulfilled for sure, not enough although

hazaron KHwahishen aisi ki har KHwahish pe dam nikle

bahut nikle mere arman lekin phir bhi kam nikle

I have a thousand yearnings , each one afflicts me so

Many were fulfilled for sure, not enough although

un ke dekhe se jo aa jaatī hai muñh par raunaq

vo samajhte haiñ ki bīmār haal achchhā hai

un ke dekhe se jo aa jati hai munh par raunaq

wo samajhte hain ki bimar ka haal achchha hai

ye na thī hamārī qismat ki visāl-e-yār hotā

agar aur jiite rahte yahī intizār hotā

That my love be consummated, fate did not ordain

Living longer had I waited, would have been in vain

ye na thi hamari qismat ki visal-e-yar hota

agar aur jite rahte yahi intizar hota

That my love be consummated, fate did not ordain

Living longer had I waited, would have been in vain

ragoñ meñ dauḌte phirne ke ham nahīñ qaa.il

jab aañkh se na Tapkā to phir lahū kyā hai

merely because it courses through the veins, I'm not convinced

if it drips not from one's eyes blood cannot be held true

ragon mein dauDte phirne ke hum nahin qail

jab aankh hi se na Tapka to phir lahu kya hai

merely because it courses through the veins, I'm not convinced

if it drips not from one's eyes blood cannot be held true

ishrat-e-qatra hai dariyā meñ fanā ho jaanā

dard had se guzarnā hai davā ho jaanā

ishrat-e-qatra hai dariya mein fana ho jaana

dard ka had se guzarna hai dawa ho jaana

na thā kuchh to ḳhudā thā kuchh na hotā to ḳhudā hotā

Duboyā mujh ko hone ne na hotā maiñ to kyā hotā

In nothingness God was there, if naught he would persist

Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist

EXPLANATION

यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति जाने क्या होती।

इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।

हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।

इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला तन्हा मौजूद रहेगा।

इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।

Shafaq Sopori

na tha kuchh to KHuda tha kuchh na hota to KHuda hota

Duboya mujh ko hone ne na hota main to kya hota

In nothingness God was there, if naught he would persist

Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist

EXPLANATION

यह शे’र ग़ालिब के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र में जितने सादा और आसान अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं, उतनी ही ख़्याल में संजीदगी और गहराई भी है। आम पढ़ने वाला यही भावार्थ निकाल सकता है कि जब कुछ मौजूद नहीं था तो ख़ुदा का अस्तित्व मौजूद था। अगर ब्रह्मांड में कुछ भी होता फिर भी ख़ुदा की ज़ात ही मौजूद रहती। यानी ख़ुदा की ज़ात को किसी बाहरी वस्तु के अस्तित्व की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वस्तु को उसकी ज़ात की ज़रूरत होती है। दूसरे मिसरे में यह कहा गया है कि मुझको अपने होने से यानी अपने ख़ुद के ज़रिए नुक़्सान पहुँचाया गया, अगर मैं नहीं होता तो मेरे अपने अस्तित्व की प्रकृति जाने क्या होती।

इस शे’र के असली मानी को समझने के लिए तसव्वुफ़ के दो बड़े सिद्धांतों को समझना ज़रूरी है। एक नज़रिए को हमा-ओस्त यानी सर्वशक्तिमान और दूसरे को हमा-अज़-ओस्त या सर्वव्यापी कहा गया है। हमा-ओस्त के मानी ''सब कुछ ख़ुदा है'' होता है। सूफ़ियों का कहना है कि ख़ुदा के सिवा किसी चीज़ का वजूद नहीं। यह ख़ुदा ही है जो विभिन्न रूपों में दिखाई देता है। हमा-अज़-ओस्त के मानी हैं कि सारी चीज़ें ख़ुदा से हैं। इसका मतलब है कि कोई चीज़ अपने आप में मौजूद नहीं बल्कि हर चीज़ को अपने अस्तित्व के लिए अल्लाह की ज़रूरत होती है।

हमा-ओस्त समूह से ताल्लुक़ रखने वाले सूफियों का कहना है कि चूँकि ख़ुदा ख़ुद फ़रमाता है कि मैं ज़मीन और आस्मानों का नूर हूँ इसलिए हर चीज़ उस नूर का एक हिस्सा है।

इसी नज़रिए से प्रभावित हो कर ग़ालिब ने ये ख़याल बाँधा है। शे’र की व्याख्या करने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि ख़ुदा की ज़ात सबसे पुरानी है। यानी जब दुनिया में कुछ नहीं था तब भी ख़ुदा की ज़ात मौजूद थी और ख़ुदा की ज़ात हमेशा रहने वाली है। अर्थात जब कुछ भी होगा तब ख़ुदा की ज़ात मौजूद रहेगी। यहाँ तात्पर्य क़यामत से है जब अल्लाह के हुक्म से सारे प्राणी ख़त्म हो जाएंगे और अल्लाह सर्वशक्तिमान अकेला तन्हा मौजूद रहेगा।

इसी तथ्य के संदर्भ में ग़ालिब कहते हैं कि चूँकि अल्लाह की ज़ात प्राचीन है इसलिए जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था तो उसकी ज़ात मौजूद थी और जब कोई हस्ती मौजूद रहेगी तब भी अल्लाह की ही ज़ात मौजूद रहेगी और चूँकि मैं अल्लाह सर्वशक्तिमान के नूर का एक हिस्सा हूँ और मुझे मेरे पैदा होने ने उस पूर्ण प्रकाश से जुदा कर दिया, इसलिए मेरा अस्तित्व मेरे लिए नुक़्सान की वजह है। यानी मेरे होने ने मुझे डुबोया कि मैं कुल से अंश बन गया। अगर मैं नहीं होता तो क्या होता यानी पूरा नूर होता।

Shafaq Sopori

rañj se ḳhūgar huā insāñ to miT jaatā hai rañj

mushkileñ mujh par paḌīñ itnī ki āsāñ ho ga.iiñ

ranj se KHugar hua insan to miT jata hai ranj

mushkilen mujh par paDin itni ki aasan ho gain

aah ko chāhiye ik umr asar hote tak

kaun jiitā hai tirī zulf ke sar hote tak

A prayer needs a lifetime, an answer to obtain

who can live until the time that you decide to deign

aah ko chahiye ek umr asar hote tak

kaun jita hai teri zulf ke sar hote tak

A prayer needs a lifetime, an answer to obtain

who can live until the time that you decide to deign

reḳhte ke tumhīñ ustād nahīñ ho 'ġhālib'

kahte haiñ agle zamāne meñ koī 'mīr' bhī thā

reKHte ke tumhin ustad nahin ho 'ghaalib'

kahte hain agle zamane mein koi 'mir' bhi tha

haiñ aur bhī duniyā meñ suḳhan-var bahut achchhe

kahte haiñ ki 'ġhālib' hai andāz-e-bayāñ aur

hain aur bhi duniya mein suKHan-war bahut achchhe

kahte hain ki 'ghaalib' ka hai andaz-e-bayan aur

bas-ki dushvār hai har kaam āsāñ honā

aadmī ko bhī muyassar nahīñ insāñ honā

Tis difficult that every goal be easily complete

For a man, too, to be human, is no easy feat

bas-ki dushwar hai har kaam ka aasan hona

aadmi ko bhi muyassar nahin insan hona

Tis difficult that every goal be easily complete

For a man, too, to be human, is no easy feat

bāzīcha-e-atfāl hai duniyā mire aage

hotā hai shab-o-roz tamāshā mire aage

just like a child's playground this world appears to me

every single night and day, this spectacle I see

bazicha-e-atfal hai duniya mere aage

hota hai shab-o-roz tamasha mere aage

just like a child's playground this world appears to me

every single night and day, this spectacle I see

kaaba kis muñh se jāoge 'ġhālib'

sharm tum ko magar nahīñ aatī

Ghalib,what face will you to the kaabaa take

when you are not ashamed and not contrite

kaba kis munh se jaoge 'ghaalib'

sharm tum ko magar nahin aati

Ghalib,what face will you to the kaabaa take

when you are not ashamed and not contrite

dard minnat-kash-e-davā na huā

maiñ na achchhā huā burā na huā

my pain did not seek favors from any opiate

I don't mind the fact that I did not recuperate

dard minnat-kash-e-dawa na hua

main na achchha hua bura na hua

my pain did not seek favors from any opiate

I don't mind the fact that I did not recuperate

koī mere dil se pūchhe tire tīr-e-nīm-kash ko

ye ḳhalish kahāñ se hotī jo jigar ke paar hotā

what pain your arrow, partly drawn, inflicts upon my heart

cleanly through if it had gone, would it this sting impart?

koi mere dil se puchhe tere tir-e-nim-kash ko

ye KHalish kahan se hoti jo jigar ke par hota

what pain your arrow, partly drawn, inflicts upon my heart

cleanly through if it had gone, would it this sting impart?

kahāñ mai-ḳhāne darvāza 'ġhālib' aur kahāñ vaa.iz

par itnā jānte haiñ kal vo jaatā thā ki ham nikle

Wherefrom the 'saintly' priest, and where the tavern's door

But as I entered he was leaving, this much I do know

kahan mai-KHane ka darwaza 'ghaalib' aur kahan waiz

par itna jaante hain kal wo jata tha ki hum nikle

Wherefrom the 'saintly' priest, and where the tavern's door

But as I entered he was leaving, this much I do know

qarz piite the mai lekin samajhte the ki haañ

rañg lāvegī hamārī fāqa-mastī ek din

qarz ki pite the mai lekin samajhte the ki han

rang lawegi hamari faqa-masti ek din

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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