जश्न-ए-आज़ादी

देश प्रेम की भावना पर आधारित उर्दू की चुनिंदा शायरी


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है मोहब्बत इस वतन से अपनी मिट्टी से हमें


इस लिए अपना करेंगे जान-ओ-तन क़ुर्बान हम

मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने


वो क़र्ज़ उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे

वतन की पासबानी जान-ओ-ईमाँ से भी अफ़ज़ल है


मैं अपने मुल्क की ख़ातिर कफ़न भी साथ रखता हूँ

दिल से निकलेगी मर कर भी वतन की उल्फ़त


मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी

तन-मन मिटाए जाओ तुम नाम-ए-क़ौमीयत पर


राह-ए-वतन पर अपनी जानें लड़ाए जाओ

वतन की रेत ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे


मुझे यक़ीं है कि पानी यहीं से निकलेगा

वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है


मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में

ख़ूँ शहीदान-ए-वतन का रंग ला कर ही रहा


आज ये जन्नत-निशाँ हिन्दोस्ताँ आज़ाद है

लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है


उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी

अहल-ए-वतन शाम-ओ-सहर जागते रहना


अग़्यार हैं आमादा-ए-शर जागते रहना

दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो


निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो

वतन के जाँ-निसार हैं वतन के काम आएँगे


हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमाँ बनाएँगे

उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता


जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना


हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

जन्नत की ज़िंदगी है जिस की फ़ज़ा में जीना


मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है

पूछो हम-सफ़रो मुझ से माजरा-ए-वतन


वतन है मुझ पे फ़िदा और मैं फ़िदा-ए-वतन

कारवाँ जिन का लुटा राह में आज़ादी की


क़ौम का मुल्क का उन दर्द के मारों को सलाम

वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम-बरदार-ए-आज़ादी


वतन की पासबाँ वो तेग़-ए-जौहर-दार-ए-आज़ादी

क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का


थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत

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