तमन्ना शायरी
इच्छा इंसान की स्वाभाविक प्रवृति है । हर इंसान अपनी ज़िंदगी में कुछ न कुछ इच्छा रखता है । हमारे जीवन में दुख और हसरतों का एक बड़ा कारण हमारी तमन्नाएं हैं । हमारी इच्छा और आरज़ू अक्सर पूरी नहीं होतीं, लेकिन हम उस को पालते हैं । दर-अस्ल तमन्ना एक ऐसी ख़्वाहिश का नाम है जो ज़िंदगी के हर मरहले में किसी न किसी तरह से मौजूद रहती है । उर्दू शाइरी ने जीवन के इस तजरबे को बड़ी ख़ूबसूरती से पेश किया है । यहाँ तमन्ना-शाइरी के ख़ास रंगों का एक संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है ।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
I have a thousand yearnings , each one afflicts me so
Many were fulfilled for sure, not enough although
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने
आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
Love has a need for patience, desires are a strain
as long my ache persists, how shall my heart sustain
ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
लफ़्ज़ सूझा तो मआ'नी ने बग़ावत कर दी
ज़िंदगी क्या जो बसर हो चैन से
दिल में थोड़ी सी तमन्ना चाहिए
अरमान वस्ल का मिरी नज़रों से ताड़ के
पहले ही से वो बैठ गए मुँह बिगाड़ के
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास
मेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे
बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी
even after death my love did not forsake
at my grave my desires kept a steady wake
दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के
तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना
तिरी आरज़ू है अगर आरज़ू है
ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को
वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता
ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़ुज़ूल है
सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा
हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का
मैं आ गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में
जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी न रहे
यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी
my love beside me, solitude, tell them to play a part
why do my desires cower hidden in my heart
मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है
तुम्हारे साथ मिल कर ख़ुद को धोना चाहता हूँ मैं
एक भी ख़्वाहिश के हाथों में न मेहंदी लग सकी
मेरे जज़्बों में न दूल्हा बन सका अब तक कोई
जीने वालों से कहो कोई तमन्ना ढूँडें
हम तो आसूदा-ए-मंज़िल हैं हमारा क्या है
मिरी हस्ती है मिरी तर्ज़-ए-तमन्ना ऐ दोस्त
ख़ुद मैं फ़रियाद हूँ मेरी कोई फ़रियाद नहीं
इश्क़ है जी का ज़ियाँ इश्क़ में रक्खा क्या है
दिल-ए-बर्बाद बता तेरी तमन्ना क्या है
बाक़ी है अब भी तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँकर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
हम न मानेंगे ख़मोशी है तमन्ना का मिज़ाज
हाँ भरी बज़्म में वो बोल न पाई होगी
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
ऐसे ज़ख़्म को अच्छा कर के बैठ गए
मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन
न मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे