aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

चाँद पर शेर

चाँद उर्दू शाएरी का

एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा

इफ़्तिख़ार नसीम

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा

इब्न-ए-इंशा

ईद का चाँद तुम ने देख लिया

चाँद की ईद हो गई होगी

इदरीस आज़ाद

इतने घने बादल के पीछे

कितना तन्हा होगा चाँद

परवीन शाकिर

हर एक रात को महताब देखने के लिए

मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए

अज़हर इनायती

फूल गुल शम्स क़मर सारे ही थे

पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत

मीर तक़ी मीर

वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा

तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं

फ़रहत एहसास

बेचैन इस क़दर था कि सोया रात भर

पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर

अज्ञात

चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है

अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है

फ़रहत एहसास

वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गया

ये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से

आदिल मंसूरी

गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर

अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो

मीर तक़ी मीर

रात के शायद एक बजे हैं

सोता होगा मेरा चाँद

परवीन शाकिर

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए

तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए

बशीर बद्र

वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं

अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो

इब्न-ए-इंशा

फ़लक पे चाँद सितारे निकलते हैं हर शब

सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल

वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है

अज्ञात

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है

चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाब

देर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है

अहमद कमाल परवाज़ी

हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा

चाँद के साथ चलोगे कब तक

शोहरत बुख़ारी

पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर

इक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी

सरवत हुसैन

चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है

चाँद पर चाँदनी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम जाए

इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी

कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए

लहू मिरे ही जिगर में था तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी

अहमद मुश्ताक़

लुत्फ़-ए-शब-ए-मह दिल उस दम मुझे हासिल हो

इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

रात को रोज़ डूब जाता है

चाँद को तैरना सिखाना है

बेदिल हैदरी

चाँद में तू नज़र आया था मुझे

मैं ने महताब नहीं देखा था

अब्दुर्रहमान मोमिन

वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर'

कि मेरे बा'द सितारे कहेंगे अफ़्साने

क़मर जलालवी

इक दीवार पे चाँद टिका था

मैं ये समझा तुम बैठे हो

बशीर बद्र

ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है

बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर'

इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन

क़मर जलालवी

सब सितारे दिलासा देते हैं

चाँद रातों को चीख़ता है बहुत

आलोक मिश्रा

बारिश के बा'द रात सड़क आइना सी थी

इक पाँव पानियों पे पड़ा चाँद हिल गया

ख़्वाजा हसन असकरी

तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में

आसमाँ के बदन पर कोई घाव है

त्रिपुरारि

चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं

हम ने भी उस से कोई बात की

महमूद अयाज़

हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल

हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका

सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा

बशीर बद्र

ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही हो

अँधियारी रात में कोई महताब ही हो

ख़लील मामून

दूर के चाँद को ढूँडो किसी आँचल में

ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला

निदा फ़ाज़ली

फूल बाहर है कि अंदर है मिरे सीने में

चाँद रौशन है कि मैं आप ही ताबिंदा हूँ

अहमद शनास

रात इक शख़्स बहुत याद आया

जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

आसमान और ज़मीं का है तफ़ावुत हर-चंद

सनम दूर ही से चाँद सा मुखड़ा दिखला

हैदर अली आतिश

चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे

आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

पूछना चाँद का पता 'आज़र'

जब अकेले में रात मिल जाए

बलवान सिंह आज़र

वो जुगनू हो सितारा हो कि आँसू

अँधेरे में सभी महताब से हैं

अख़तर शाहजहाँपुरी

मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है

इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है

ख़ावर एजाज़

मुझे ये ज़िद है कभी चाँद को असीर करूँ

सो अब के झील में इक दाएरा बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा

मेरी तरह से ये भी सताया हुआ है क्या

क्यूँ इतने दाग़ दिखते हैं महताब में अभी

ख़लील मामून

हर रंग है तेरे आगे फीका

महताब है फूल चाँदनी का

जलील मानिकपूरी

चाँद में तू नज़र आया था मुझे

मैं ने महताब नहीं देखा था

अब्दुर्रहमान मोमिन

कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे का है

चाँद सी सूरत दुपट्टा सर पे यक-तारे का है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए