मायूसी पर शेर
मायूसी ज़िंदगी में एक
मनफ़ी क़दर के तौर पर देखी जाती है लेकिन ज़िंदगी की सफ़्फ़ाकियाँ मायूसी के एहसास से निकलने ही नहीं देतीं। इस सब के बावजूद ज़िंदगी मुसलसल मायूसी से पैकार किए जाने का नाम ही है। हम मायूस होते हैं लेकिन फिर एक नए हौसले के साथ एक नए सफ़र पर गामज़न हो जाते हैं। मायूसी की मुख़्तलिफ़ सूरतों और जहतों को मौज़ू बनाने वाला हमारा ये इन्तिख़ाब ज़िंदगी को ख़ुश-गवार बनाने की एक सूरत है।
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए
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मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है
रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या न था
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
आज तो बे-सबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
दिल तो मेरा उदास है 'नासिर'
शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है
ना-उमीदी बढ़ गई है इस क़दर
आरज़ू की आरज़ू होने लगी
रोने लगता हूँ मोहब्बत में तो कहता है कोई
क्या तिरे अश्कों से ये जंगल हरा हो जाएगा
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
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उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गईं आई गई
ज़ख़्म ही तेरा मुक़द्दर हैं दिल तुझ को कौन सँभालेगा
ऐ मेरे बचपन के साथी मेरे साथ ही मर जाना
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ
मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है
ये और बात कि चाहत के ज़ख़्म गहरे हैं
तुझे भुलाने की कोशिश तो वर्ना की है बहुत
उठते नहीं हैं अब तो दुआ के लिए भी हाथ
किस दर्जा ना-उमीद हैं परवरदिगार से
सब सितारे दिलासा देते हैं
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
जो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा बीमार हो गया
अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम
तू ने दुख ऐ दिल-ए-नाकाम बहुत सा पाया
दिन किसी तरह से कट जाएगा सड़कों पे 'शफ़क़'
शाम फिर आएगी हम शाम से घबराएँगे
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
देखते हैं बे-नियाज़ाना गुज़र सकते नहीं
कितने जीते इस लिए होंगे कि मर सकते नहीं
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
मैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ
बहुत दिनों से मिरे बाम-ओ-दर का हिस्सा है
मिरी तरह ये उदासी भी घर का हिस्सा है
ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगर
एक तस्कीन सी हो जाती है
मुस्कुराने की क्या ज़रूरत है
आप यूँ भी उदास लगते हैं
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मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन
उदासी नाम ही लेती नहीं बाहर निकलने का
शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थी
आप आए तो मुझ को याद आया
उदासियाँ हैं जो दिन में तो शब में तन्हाई
बसा के देख लिया शहर-ए-आरज़ू मैं ने
मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'
उदासी जाने कब से रह रही है