दिल पर शेर
दिल शायरी के इस इन्तिख़ाब
को पढ़ते हुए आप अपने दिल की हालतों, कैफ़ियतों और सूरतों से गुज़़रेंगे और हैरान होंगे कि किस तरह किसी दूसरे, तीसरे आदमी का ये बयान दर-अस्ल आप के अपने दिल की हालत का बयान है। इस बयान में दिल की आरज़ुएँ हैं, उमंगें हैं, हौसले हैं, दिल की गहराइयों में जम जाने वाली उदासियाँ हैं, महरूमियाँ हैं, दिल की तबाह-हाली है, वस्ल की आस है, हिज्र का दुख है।
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
आप पहलू में जो बैठें तो सँभल कर बैठें
दिल-ए-बेताब को आदत है मचल जाने की
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
तुम ज़माने की राह से आए
वर्ना सीधा था रास्ता दिल का
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे
''आप की याद आती रही रात भर''
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से
इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
जानता है कि वो न आएँगे
फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो
मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझ को तिरे नाम से पहचानते हैं
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है
रंज कम सहता है एलान बहुत करता है
आरज़ू तेरी बरक़रार रहे
दिल का क्या है रहा रहा न रहा
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है
दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता
शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो
उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं
मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे
जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या न था
दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है