Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

तन्हाई पर शेर

क्लासिकी उर्दू शाइरी

में तन्हाई का संदर्भ प्रेम का पारंपरिक सौंदर्य है । क्लासिकी शाइरी का महबूब जब मिलन से इनकार करता है तो उस का आशिक़ विरह के दुख से गुज़रता है । अब केवल महबूब की याद उस के जीवन को सहारा देती है । तन्हाई और एकाकीपन के अर्थों का विस्तार उर्दू की आधुनिक शाइरी में होता है और अब इश्क़-ओ-मोहब्बत से आगे का सफ़र तय होता है । आधुनिक शाइरी में तन्हाई कभी मशीनी ज़िंदगी का रूपक बनती है तो कभी इंसान के अपने अस्तित्व और ख़ाली-पन को विषय बनाती है । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को उर्दू शाइरी के ट्रेंड को समझने में मदद मिलेगी ।

कोई क्या जाने कि है रोज़-ए-क़यामत क्या चीज़

दूसरा नाम है मेरी शब-ए-तन्हाई का

जलील मानिकपूरी

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

गुलज़ार

कमरे में मज़े की रौशनी हो

अच्छी सी कोई किताब देखूँ

मोहम्मद अल्वी

दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से

कैसी तन्हाई टपकती है दर दीवार से

अकबर हैदराबादी

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है

ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पंछी सारे पेड़ से उड़ जाएँगे

सहन में इक ख़ामुशी रह जाएगी

अफ़ज़ल हज़ारवी

इस बुलंदी पे बहुत तन्हा हूँ

काश मैं सब के बराबर होता

ताहिर फ़राज़

अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है

कोई जाए तो वक़्त गुज़र जाता है

ज़ेहरा निगाह

किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ

क्या बताऊँ किस क़दर तन्हा हूँ मैं

अनवर शऊर

सर-बुलंदी मिरी तंहाई तक पहुँची है

मैं वहाँ हूँ कि जहाँ कोई नहीं मेरे सिवा

अरशद अब्दुल हमीद

उदासियाँ हैं जो दिन में तो शब में तन्हाई

बसा के देख लिया शहर-ए-आरज़ू मैं ने

जुनैद हज़ीं लारी

यादों के शबिस्तान में बैठा हुआ साइल

तन्हा जो नज़र आता है तन्हा नहीं होता

साईल इमरान

मैं तो तन्हा था मगर तुझ को भी तन्हा देखा

अपनी तस्वीर के पीछे तिरा चेहरा देखा

जमील मलिक

मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें

ये लीजे आप का घर गया है हात छोड़ें

जावेद सबा

अब तो उन की याद भी आती नहीं

कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

मैं अपने साथ रहता हूँ हमेशा

अकेला हूँ मगर तन्हा नहीं हूँ

अज्ञात

भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया

घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला

अलीम मसरूर

पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया

कि अपने साथ बहुत मुख़्तसर रहा हूँ मैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं

मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है

अहमद नदीम क़ासमी

देख कभी कर ये ला-महदूद फ़ज़ा

तू भी मेरी तन्हाई में शामिल हो

ज़ेब ग़ौरी

यादों की महफ़िल में खो कर

दिल अपना तन्हा तन्हा है

आज़ाद गुलाटी

ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें

ये कैसे लोग हैं जिन को घरों से डर नहीं लगता

सलीम अहमद

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में

तिरी याद आँखें दुखाने लगी

आदिल मंसूरी

दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं

तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख

आदिल मंसूरी

जम्अ करती है मुझे रात बहुत मुश्किल से

सुब्ह को घर से निकलते ही बिखरने के लिए

जावेद शाहीन

यूँ रात गए किस को सदा देते हैं अक्सर

वो कौन हमारा था जो वापस नहीं आया

क़मर अब्बास क़मर

हवा की डोर में टूटे हुए तारे पिरोती है

ये तन्हाई अजब लड़की है सन्नाटे में रोती है

शाहिद कमाल

मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा

तमाम रात तिरे पहलुओं से आँच आई

नासिर काज़मी

मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं

मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ

मुनीर नियाज़ी

मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत

मैं चेहरों के जंगल का सन्नाटा हूँ

अम्बर बहराईची

सिमटती फैलती तन्हाई सोते जागते दर्द

वो अपने और मिरे दरमियान छोड़ गया

रियाज़ मजीद

तू मेरे साथ नहीं है तो सोचता हूँ मैं

कि अब तो तुझ से बिछड़ने का कोई डर भी नहीं

शाहिद कमाल

शहर की भीड़ में शामिल है अकेला-पन भी

आज हर ज़ेहन है तन्हाई का मारा देखो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

हम अंजुमन में सब की तरफ़ देखते रहे

अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला

मुस्तफ़ा ज़ैदी

अपने साए से चौंक जाते हैं

उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा

गुलज़ार

ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ

हम अपने शहर में होते तो घर गए होते

व्याख्या

यह शे’र उर्दू के मशहूर अशआर में से एक है। इसमें जो स्थिति पाई जाती है उसे अत्यंत एकांत अवस्था की कल्पना की जा सकती है। इसके विधानों में शिद्दत भी है और एहसास भी। “सर्द रात”, “आवारगी” और “नींद का बोझ” ये ऐसी तीन अवस्थाएं हैं जिनसे तन्हाई की तस्वीर बनती है और जब ये कहा कि “हम अपने शहर में होते तो घर गए होते” तो जैसे तन्हाई के साथ साथ बेघर होने की त्रासदी को भी चित्रित किया गया है। शे’र का मुख्य विषय तन्हाई और बेघर होना और अजनबीयत है। शायर किसी और शहर में है और सर्द रात में आँखों पर नींद का बोझ लिये आवारा घूम रहा है। स्पष्ट है कि वो शहर में अजनबी है इसलिए किसी के घर नहीं जा सकता वरना सर्द रात, आवारगी और नींद का बोझ वो मजबूरियाँ हैं जो किसी ठिकाने की मांग करती हैं। मगर शायर की त्रासदी यह है कि वो तन्हाई के शहर में किसी को जानता नहीं इसीलिए कहता है कि अगर मैं अपने शहर में होता तो अपने घर चला गया होता।

शफ़क़ सुपुरी

उम्मीद फ़ाज़ली

इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई

जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या

अतहर नफ़ीस

तिरी यादों से महका है मेरी तन्हाई का आलम

क़यामत तक इन्हीं तन्हाइयाँ में डूबना चाहूँ

अमीता परसुराम मीता

ज़मीं आबाद होती जा रही है

कहाँ जाएगी तन्हाई हमारी

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर

है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल

हम अंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ हो

मिर्ज़ा ग़ालिब

सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में

दिल-ए-नादाँ तुझे उम्मीद-ए-सहर है भी तो क्या

मुज़्तर ख़ैराबादी

हम अपनी धूप में बैठे हैं 'मुश्ताक़'

हमारे साथ है साया हमारा

अहमद मुश्ताक़

कोई भी यक़ीं दिल को 'शाद' कर नहीं सकता

रूह में उतर जाए जब गुमाँ की तन्हाई

ख़ुशबीर सिंह शाद

माँ की दुआ बाप की शफ़क़त का साया है

आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है

अंजुम सलीमी

तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो

ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

शहरयार

इतने घने बादल के पीछे

कितना तन्हा होगा चाँद

परवीन शाकिर

दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिए

ये शिकस्ता बाम-ओ-दर भी हम-सफ़र हो जाएँगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

नई नहीं है ये तन्हाई मेरे हुजरे की

मरज़ हो कोई भी है चारागर से डर जाना

विजय शर्मा

अपने होने का कुछ एहसास होने से हुआ

ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ

मुसव्विर सब्ज़वारी

एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक

जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

निदा फ़ाज़ली

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए